सइताहा

छत्तीसगढ़ी कहानियॉ भाग तेरह - सइताहा


गांव म काकरो घर चिटठी अवइ साहज बात नोहे, वहु म सरकारी चिटठी। काकरो घर म आथे तव गांव भर म सोर उड़ जथे। काबर अइस, काकर बर अइस गांव-गांव जान डारथे। फेर मंगतू गउटिया घर के चिटठी के सोर नइ उड़े। ऊंकर घर तो महीना पंदराही म चिटठी आतेच रिथे। चिटठी झोकत-झोकत ओकर उम्मर पोहावथे। गांव म कोनो पढ़े-लिखे ल नइ जानत रिहिस ते बखत ले ओकर घर म चिटठी आवत हे। अब तो वोकर नानकुन टूरा रतनू ह चिटठी पढ़ डरथे।
पोस्टमेन ह सइकिल के ठिनठिनी बजावत अइस अउ ठउका मंगतूच के दुवारी म सइकिल टेकाइस। मंगतू ह मुहाटी म चोंगी पियत बइठे रिहिस। अपन ह चिटठी ल नइ झोकिस रतनू ल किथे- जात रे रतनू पेरन्हा खार के पेसी के चिटठी ल झोक। डोकरा ह पढ़े-लिखे नइहे फेर चिटठी के रंग ल देख के जान डारथे पेसी के हरे किके। रतनू ह चिटठी ल झोकिस। उदास मन ले काहत हे अऊ कतका दिन ले पेरही ये पेरन्हा खार के पेसी ह। मंगतू ह भले आधा उमर के होगे फेर ओकर मन म गजब बिस्वास भरे हे। रतनू ल समझावत किथे- हमर जियत भर लड़बो थाना कछेरी ल ये हर हमर पुरखा के चिन्हा ये।
मंगतू ह अपन आगू के दिन ला सोरियावत हे। सौ अक्कड़ के जोतनदार मंगतू गउटिया काहत लागय। नाव हे मंगतू फेर ओकर दान धरम ल गांव-गांव जानथे। मंगतू के दुवारी ले कोनो दुच्छा नइ लहुटत रिहिस। गजब खेती-खार अउ रुपिया पइसा वाला रिहिस। आदत बेवहार म देवता बरोबर माने गांव वाला मन। ओकर पुछे बिना गांव म एक ठन पाना नइ डोलत रिहिस। मेला-मड़ई होवे चाहे रमायन किरतन। मंगतू गौटिया अगरबत्ती बार के सुरु करय। जम्मो परमुख काम म अगवा बरोबर ठाड़हे राहय।
हांसी खुसी ले सबो काम ल सीध पार के घर जाय ताहन वोकर मन उदास होजय। दुवारी म चड़ते साथ गउटनीन के उतरे थोथना। मंगतू ह कुछू केहे नइ पाय रिहिस गउटनीन के सुरु-दिन भर तोला घर-दुवार के संसो नइ राहय। बेरा उतरथे त घर डहर लोरहकथस। तोर अइसने करनी के सेती हमर खेती-खार बिगड़तहे। एका झन लइका ल कोरा म ओधा लेतेन ते हमरो डिह-डोंगरी म दीया बारतिस। मरत खानी एक मुठा पानी देतिस। येहा गउटनीन के रोज के बोली आए। बपरा मंगतू हा कलेचुप सुनय अउ गउटनिन ह अपन मन के बोझा ल हरु करय। बीस बछर होगे रिहिस तभो ले ओकर कोरा ह हरु गरु नइ होइस।
दिनो-दिन गउटनीन ल घुना खात रिहिस। तब मंगतू गउटिया ह अपन कका के टूरा परेम ल अपन कोरा म ओधा लिस। परेम ह अपन बाप कर बाटा म एक ठन टेपरी ल पाय रिहिस। बाड़हे परवार म एक ठन टेपरी के धान कतेक दिन ले पुरही। राहत ले खावय ताहन खंगे त बाड़ही मांग के गुजारा करय। साल के साल बाड़ही मंगई म ओकर उपर करजा लदाय राहय। मंगतू ल परेम उपर दया आगे अउ गउटनीन ह घला परेम ल चाहे।
परेम ह गजब कमइया घला रिहिस। गउटनीन के केहे म परेम ह अपन लोग लइका सुद्धा गउटिया घर आगे। 
 गउटिया ह अपन धरम-करम के काम करय अउ परेम वोकर खेती-खार के सरेखा करय। मंगतू के दया-धरम हा भगवान के आंखी म दिखत रिहिस। परेम के गौटिया घर अवई हा फलित होगे।
चार महीना के बिते ले गउटनिन के पांव भारी होगे। दूनो परानी ल गजब खुशी हागे। ऊकर म बाबू अइस तव मानो दुनिया के जम्मो सुख वोकर आगू म आगे। लइका के लालन-पालन म दूनो परानी ह जम्मो बेरा ल पोहा दए। सबो खेती खार के देख-रेख ल परेम ह करय।
एक दिन उदुप ले परेम ह गउटिया के घर ल छोड़ के पटइल बाड़ा म रेहे ल चल दिस। वोकर मन के बात उही जाने मंगतू गजब पुछिस फेर परेम ह एक भाखा नइ बकरिस। पटइल के टूरा ह साहर म वकील हे अउ सबे परवार सुद्धा साहर म रइथे। पटइल ह एक दिन गांव आइस त गांव वाला मन ओकरे मुंह के सुनिस कि परेम ह बाड़ा ल बिसा डरे हाबे।
गउटिया-गउटनिन के बियाए लइका ह बाड़ही तब मोला धुतकार दिही कइके परेम ह धोखा ले आधा जमीन ल अपन नाव करा डरे रिहिस। परेम ह मंगतू बर मने-मन गजब कपट करके ओकर गोद बेटा बनके जमीन ल वकील करा बेच डरे रिहिस। सइताहा परेम ह खाए पतरी म छेदा करही कइके मंगतू ह का जानय।
जानबा होइस त मंगतू अउ परेम म गजब झगरा झांसी होइस। गांव म बइठका सकलाइस। गांव के बइठका म परेम ह अपन गलती ल कबुलिस। उकील के भपकी म करनी करे हवं किके बकरिस। परेम ह अइसन गुनहगरा होही किके मंगतू का जानय।
गांव वाला मन घला नइ सोचे रिहिस कि परेम अइसन करनी करही किके। जेन ह आसरा दिस, करजा बोड़ी ले उबारिस उही ल दगा देदिस। परेम के करनी कबुले ले का होही। गांव के बात गांव नइ रिहिस। कोट कछेरी म आगे रिहिस। मंगतू ह घला कछेरी म दरखस दिस। पेसी ऊपर पेसी बाड़त गिस।
बाप पुरखा थाना-कछेरी देखे नइ रिहिस तेन ह आज अपन पुरखा के चिनहा ल बचाय बर जी परान ल दे के भीड़े हे। पेसी के चक्कर म मंगतू के कोठी अटगे। धनहा डोली ह परिया परगे। वो खेत ल न वकील बो सकत हे न मंगतू अऊ परेम तो वो खार ले दू कोस दूरिहा रेगथे। गांव म परेम बर अब काकरो करा मीठ बोली नइये। कोनो वोला एक पइसा के नइ पतियावतहे। बनि भुती बर लुलवावथे। जेने पावथे तेने धुतकार के काम देवथे। परेम ह जेन वकील के भपकी म करनी करे रिहिस तेनो ह अपन बाड़ा ले निकाल बाहिर कर दिस।
मंगतू ह मुड़ी धरे बइठे हे। खेत के आखरी सुनई हे अउ घर म चार आना पइसा नइये। गांव म खेती के जमीन ल खेती के पाछू बिगाड़ डरे हे। घर भर बाचें हे कइके मंगतू मने-मन सोचत हे। खेत के आखरी पेसी बर रूपिया के जुगाड़ म लगे हे मंगतू हा। वकील संग मानमनौता हो के खेत ल पा लिही। फेर बदली म वकील ह गजब अकन रुपिया मांगत हे। रतिहा कुन मंगतू मने-मन इही गुनथे कि बिहनिया घर ल गिरवी धरबो। अउ गुनत-गुनत आंखी ल मुंदे खटिया म डलगे हे।
थोरके म बादर लदलदा गे। गरज घुमर के पानी बरसे लगगे। मंगतू गउटिया कर तो घाम पानी ले बांचे बर घर हाबे। फेर परेम करा घर दुवार कांही नइ बाचिस।
बरसत पानी म एकर छानी ओकर छानी लुकावत हे। रदरदउवन पानी म पेरम ह गउटिया के पिछोत म लुकाय हे। बिकराल पानी म गांव चोरो बोरो होगे, भाड़ी अउ देवाल मन ओदरत हे। आधा रात के बिजली म पानी परेम ह अपन लोग लइका ल पोटारे दिवाल तिर ओधे हे।
थोरकेच म बादर गरजिस अउ बाड़ा के एक डहर के देवाल ह भकरस ले ओदारगे। धनतो परेम डहर के देवाल नइ गिरस नइते माई-पिल्ला जात रितिस।
बिजली के अंजोर म देवाल डहर ल परेम देखिस त नानकुन बटलोही गिरे राहय। बटलोही के भीतर म गजब अकन मोहर मन जुगूर-जुगूर चमकत रिहिस। पानी के धार म मोहर मन ऐती ओती ढुलत रिहिस।
परेम ह देखते साठ जान डरिस कि गउटिया के ददा ह देवाल म दबाय रिहिस होही तेने मोहर मन ह आज देवाल संग गिरगे। रात के अंधयारी म परेम के छोड़ कोनो अउ नइ देखिस। उपर ले गजब पानी घलो गिरत रिहिस। मंगतू गउटिया अउ रतनू मन ह पानी गिरथे किके ओदरे देवाल ल देखे बर नइ उठिस।
परेम एक मन म सोचे ए मोहर ल धर के अपन दरिदरी ल दूरिहा लव का। फेर दूसर मन म सोचे कि ए ह तो गउटिया के मोहर आए। एक बेर गउटिया संग दोगलइ करे हवं तेकर सजा मैं अभी भोगते हवं। अउ अब कहू मैं सइता के मारे ये मोहर ल गटकहंू त कोन जनी आगू अऊ का दुख के दिन देखे ल परही। इही सोच के मन म सइता बांधे रात भर पानी गिरत म मोहर ल सकेलिस अउ बटलोही म भर के राखे रिहिस। बिहनिया पानी छोड़िस। गउटिया जागिस त देखिस अपन गिरे देवाल ल। ओला थोरको गम नइ रिहिस कि देवाल म मोहर गड़े रिहिस होही किके।
 परेम के मन के मईल हा रतिहा के पानी म धोवागे रिहिस। छानी कस ओरछा आंखी ले पछतावा के बुंदा टपकत रिहिस। मंगतू के पांव म गिर के रात के बात बतइस अउ बटलोही भर मोहर लउटाइस। परेम ह छिमा-छिमा काहत रोवत रिहिस। मंगतू ह परेम के सफा मन ल देख के छिमा कर दिस।
अब मंगतू अउ परेम ह मिंझरके खेत के पेसी लड़िस अउ जीत घला गे। परेम के करनी ल लइकुसहा उमर के गलती जानके मंगतू अउ गउटनीन भुला दिस अऊ फेर अपन कोरा म ओधा लिस। मंगतू के अब एक नही दू बेटा होगे। गजब दिन ले परिया परे पेरनहा खार ह फेर परेम के मेहनत ले फेर हरियागे।
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लेखक - जयंत साहू 
पता- ग्राम डूण्डा, पोस्ट- सेजबहार
जिला/ तह. रायपुर छ.ग. 492015
मो. 9826753304
jayantsahu9@gamil.com

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