जंगल के पै

छत्तीसगढ़ी कहानियॉ भाग बारह - जंगल के पै


बस्तर के सांत अउ सुंदर बन म चिरई-चिरगुन के नरयई अउ नरवा ढोड़गी ले पानी के झमर-झमर बोहई मन ल मोह लेथे। अइसन मनमोहक बन म कोनो कोती ले बघवा गुरराथे त कोनो कोती कोलिहा गोहराथे। कोन जनी जंगलिहा मन इहा कइसे रई जथे, काबर की जंगल म मनखे ले जादा तो जीव जनावर भरे हे। जंगलिहा मन बर तो सेर भालू अउ सांप-बिच्छी साहज बात होगे। जिनगी के जम्मो जरवत के जिनिस इहे हे त बाहिर के दुनिया म जाके का करही।
कठियापाली म बीस घर के जंगलिहा मन के बस्ती बसे रिहिस। कुवां-बउली, सड़क, बिजली काही नइ रिहिस। पानी पसीया के निसतारी बर नरवा ढोड़गी। बेरा उवत मंगेस ह घर के दुवारी म बइठे अपन हंसिया टंगिया म धार लगावत रिहिस। ओकर टूरा बीराट ह सांझ कन बाहिर डहर गे रिहिस तेती ले बड़ेकजन भठेलिया धर के लाने हे। बीराट संग चार झन अउ धरन लागे हे ते पाए के एक ठन भठेलिया के चार भाग बनाय बर हे। मंगेस ह हंसिया टंगिया ल धोवत बीराट ल हांक पारिस। लान न रे रात कन के भठेलिया ल पउल देथवं। अतकी बड़ जीव ल चार झन धरेहव। मे होतेव ते एक्के झन दबोच डारतेवं।
बीराट किथे- तोर आंखी बरथे नही तेमा मुंधियार कन तको भठेलिया ल अकेल्ला धर डरतेस। मंगेस किथे- आंखी नइ बरे त का होगे आरो लेवत-लेवत पछलिग्गा दउड़े म फरक नइ खाय। चार हाथ के लउठी म दूहथ्था देबे ते एके बार म चितिया जथे। बाप बेटा बातिक-बाता होवत रिहिस। ओतके म बाटा वाला मन आगे। काहां हे बीराट रातिहा के भठेलिया ह। बीराट छोपी म ढांक के राखे रिहिस तेला उघार के देखावत किथे ये दे माड़े हे। चला न रे बाटबो। 
टूरा मन सकलागे अब एमन बांट लिही किके मंगेस ह टंगिया ल मड़ा के मुखारी करे बर पइठू कोती निकलगे। बीराट, समेन, मिसीर अउ जगेन चारो झन मिल बाट के पउलिस। बरोबर-बरोबर चार कुढ़हेना मड़ा के एकक भाग ल रपोटिस अउ अपन-अपन घर लेगिस। बीराट के दाई ह तो दिन म एके बेर भात रांधथे वहू ल मंझन के बेरा म। मंगेस ह बिहनिया बासी खवइया ये अउ बीराट ल तुरते ताजा भोजन होना तेकरे सेती ओकर दाई ह तीन परत पिचकाट नइ करवं किके एक्क_ा मंझनिया के रांधे टकराहा हे। उही भात ल संझा बिहनिया करके तीन परत पुरोथे।
मंगेस ह नहा-खोर के पइठू ले अइस। बटकी म भठेलिया तोपाय रिहिस तेला खपलके एक बटकी बासी अउ परसा पान के दोना म माटरा चटनी निकाल के दिस। चटनी पइस ताहन साग पुछे के जरुरते नइहे। जीब ल लमा-लाम के सपा-सप खइस अउ हाथ पोछत निकलगे। 
सांप बिच्छू अउ बघवा भालू के बीच म रइथे तभो ले जंगलिहा मन बड़ सीधा होथे। अब देख ना ओ दिन मंगेस ह जंगल ले अमली बीन के लानत रिहिस। उही समे एक झन सहरिया ह जंगल घुमे बर आए रिहिस। मंगेस के हाथ म अमली देख के सहरिया किथे- ए काये। मंगेस किथे- अमली ताय। सहरिया का पुछथे- लेके लानथस का? मंजेठ- नही ये हा तो हमर जंगल म अब्बड़ फरे हे गा।
सहरिया- अतेक अकन अमली ला का करथव। मंगेस- अमटाहा साग बनाय के काम आथे अउ लइका मन ह अमली के चिचोल ल निकाल के मिर्चा अउ नून म सऊंद के गोल-गोल लोइ बनाके ओमा काड़ी खुसेर के लाटा बनाथे। अमली के लाटा ल लइका का सियानो मन लार चुचवा-चुचवा के खाथे।
पाके-पाके अमली ल देख के सहरिया के मुंह म पानी आगे। मंगेस ल किथे ये अमली ल मोला देदे अउ के पइसा लेबे तेला बता। मंगेस ह मोटरी सुद्धा अमली ल सहरिया ल धारा दिस। का पइसा लेहूं साहेब ये तो हमर जंगलहिन दाई के बन म उपजे आसिस फर आए। जंगलहिन दाई ह हमर असन जंगल म रहवईया मन बर अपन कोरा म आमा, अमली, तेंदू, चार, काजू, बदाम, मउहा अउ बोइर, बहेरा ल उपजाय हे येला बेच के हम दंड के भागी नइ बनन। साहर म मांहगी म बेचावत जिनिस ल फोकट म पाके सहरिया ह गदगद होगे।
मंगेस ह घर अइस त ओकर गोसइन बासन ह किथे आज कइसे दुच्छा के दुच्छा के घर आगेव हो। अतेक बिकराल बन म तोला एक ठन काहीं नइ मिलिस। मंगेस किथे एक मोटरी अमली पाय रेहेवं, रद्दा म एक झन सहरिया मिलगे मांगिस ताहन उही ल दे देवं। बासन किथे अइसने कोनो-कोनो ल तै बाटते रिबे त कतेक दिन ले पुरही। बाल्टी-बाल्टी हेरई म कुवां के पानी घलो अटा जथे। अइसन जिनिस ल गली-गली गवांय के नोहय सरेखा करके राखे के आय थोकिन यहू कोती धियान ल राखे करा। मंगेस किथे ले भई अब कोनो ल नइ बाटवं तोर मन ले मनखुसी, कांदा रांधस चाहे खोक्सी नइ खाय ते लांघन राहय, खवईया होवे आधा सीसी। जा बासी लान अउ भठेलिया ल भुंज डारे होबे ते दे एको फर। मंगेस ह तुमड़ी ल मियार म अरो के टंगिया ल परवा म खोचिस। डारा-पतेरा के घर दुवार म कतेक ल बाहरत बटोरत रही पाना-पतई उड़ाय रिहिस तेने मे लसरंग ले बईठगे। बासन ह भीतर गिस बटकी भर बासी म नून अउ गोंदली डार के लानिस अउ मंगेस के आगू मड़ावत किथे भठेलिया ल चितवा लेगे खाय बर हे त इही ल खावा।
मंगेस किथे ले काहीं नइ होय काखरो होय पेटेच म तो गिस। अउ टूरा बीराट काहा गेहे दिखत नइ हे। बीराट ह तोरे कस दाउ दानीराम थोरे हे वो ह भठेलिया खाय हे ते चिलवा ल खोजे बर गे हावय। ते हमर बांटा के मास ल खाय हस त हम तोर मास ल खाबो किके सिमेन, मिसीर अउ जगेन मन घलो ओकेर संग लेंझकी डोंगरी कोती गे हावय। जंगलिहा मन संग तो रोजे सेर, भालू अउ चितवा के ओरभेट्टा होवत रिथे इही पाय के मंगेस ह लइका मन के जादा फिकर नइ लागिस। गे होही सोर लेवत कोनो डहर पाही तभो अउ नइ पाही तभो आबे तो करही किके अराम करे बर खटिया म ढलंगे।
धीरे-धीरे बेरा बुड़त गिस अउ कुलुप अंधियार होगे। दाई-ददा ल लइका मन के संसो परगे। लइकुसहा लइका अपर ले जीव जनावर ले भरे जंगल कोनो होय खबराबेच करही। अभी आही तमही आही कइके देखते-देखत आधा रात पोहागे। दूनो परानी के आंखी म निंद नइहे। जइसे-जइसे रात के अंधियारी गढ़हावत गिस मन म आनी-बानी के सपना सतावत गिस। जवान लइका ल गवांय के डर म रात भर आंखी ले आंसू डरत रिहिस। 
होत बिहनिया गांव के गुड़ी म मुनादी होइस। सुनव सुजान देके धियान हो... गांव के चार झन लइका ह काल रात कुन के लेंझकी डोंगरी ले लहुटे नइ हे हो....। जेन कोनो ह कहू कोती आरो पाहू त गांव म आके तुरते इतला दीहा हो....। 
लइका मन ल खोजत-खोजत अठोरिया ले पंदराही बीत गे। काही सोर पता नइ चलिस। गांव के कुआं बउली, खेत-खार अउ नरवा ढोड़गी म उहीच गोठ कहा होही कइसे होही अऊ जियत होही धन कहू सेर भालू खा डरे होही। उकर मन के डर ह वाजिब आए काबर की जंगल के कारोबर।
अब तो धीरे-धीरे मंगेस घलो अपन टूरा ल पाय के आस छोड़ दिस। देबी-देवता कर दूनो परानी ह अपन बेटा के दुख कलेस ल हरे के बिनती करिस। पीपर के पेड़ म मनौती के डोरी लपेट के गुर अउ मंदरस चड़ाइस। पानी रुको के दू गड़ी हुम धूप डार के पालगी करिस। हे जंगलहिन दाई मोर बीराट ह कोनो करा रहय फेर तोर कोरा ले झन दुरिहाय। हे अन्नपुर्ण दाई लइका के पेट कभु लांघन झन राहय ओकर मुंह म अब तही ह चारा चरावत रिबे। हे जलदेवकी मोर बीराट के तन ल तारत रइबे। 
रोज के घंटा पाहर देबी-देवता के मान मनौती अउ पूजा पाठ म बासन अउ मंगेस के मन लगे राहय। अइसने देखते-देखत बारा बछर बीतगे। नानकुन कठियापाली बस्ती ह चार सौ घर के गांव बनगे रिहिस। अब लोगन मन के पिये के पानी बर कुआं बोरिंग खोदा गे हवय। गांव के लइका मन के पढ़े बर इसकूल खुलगे रिहिस। घर के जरवत के समान बिसाय बर अब गांव म सुकरार के बजार लगथे। तीर तखार के छोटे-छोटे मंजरा टोला के मन कठियापाली बजार म अपन आमा, अमली, तेदू, चार अउ गजब अकन जंगल ले बीने फल-फलहरी ल बेचे बर आवे। साहर के बयपारी मन कठियापाली बजार ले कम किमत म बिसा के लेगय अउ अपन कोती जादा दाम बेचे।
तिहार के आगु साहर के नंगत झन बयपारी मन बजार आय रिहिस। सिजन म चार पइसा जादा कमइ होथे। किंजर-किंजर के समान ल बिसावत रिहिन। ओतके बेरा आठ दस झन मनखे मन मुंह म नेकाब लगाय अइस। ककरो हाथ म नानकुन बंदूक त काकरो हाथ बाड़का बंदूक रिहिस। एके रंग के कुर्ता पेंट पहिरे बजार के चारो मुड़ा बगरगे। बयपारी मन ल चिन-चिन के मार-मार के ढनगा दिस। 
कोलबिल-कोलबिल कावं-कावं के बजार ह चार झन बयपारी के मरे ले सन्नाटा पसरगे। कावंर बिता कावंर बोहे-बोहे भागे। मछर बिता टोकनी ल छोड़के भागे। येती ओती चारो कोती भागम भाग माते रिहिस। नेकाब वाला एक झन ह गोहार पार के किहिस तुमन ल डर्राय के जरवत नइ हे। हमन तुहर अउ ए जंगल के रक्छा खातिर ये रुप धरे हन। आज के बाद कोनो बाहिर वाला मन हमर जंगल भीतर के जिनिस ल बाहिर म बगराही त उकर लास अइसने बजार-बजार म परे मिलही। सबे झन नेकाब वाला मन बजार म चि_ी छोड़ के दोरदीर-दोरदीर जंगल भितरी समागे। उखर जाए के पाछू थाना ले सिपाही अइस अउ चारो झन बयपारी मन के बारे म पुछताछ होइस। कोन मारिस काबर मारिस। काहा ले अइस काहा गिस। बजार के मन काही ल जानबे नइ करे त काला बताही। सिपाही मन लास ल गाड़ी म भरके लेगे। ऐती बर सबे नकाब वाला मन अपन ठउर म पहुंचके ओरी-ओरी खड़ा होगे। इसकूल के परथना के बेरा खड़ा होथे तइसने। उकर दल के मुखिया ह सबके गिनती करिस। कोनो ह भागे उक तो नइ हे किके।

गिनती बरोबर म रिहिस त सबे झन अपन-अपन मुंह के कपड़ा खोलत गिन। एक डहर के लाइन म चार झन उही गांव के गवाए लइका बीराट, सिमेन, मिसीर अउ जगेन रिहिस घलो खड़े रिहिस। सौ अक झन रिहिस होही तेमा के आधा मनखे मन बीस बरस के जवान रिहिस अउ पहिली बेर कोनो मनखे ल मार के आय रिहिस। बंदूक ल ओतका बेरा चलाय बर तो चला डरिस फेर अभी ले उखर हाथ कापंथे। बीराट गजब दिन बाद अपन मन बात बोले के बल करिस।
बीराट किथे- अब हमन ला अपन घर जावन दो ददा हो। आज ले बारा साल पाछु चितवा ल कूदावत-कूदावत जंगल के ये लेंझकी डोंगरी म ओइले रेहेन। हमला चितवा तो नइ मिलिस फेर तुमन धर के राख लेव। मार पीट के डरा धमका के तीर कमान चलइया ल बंदूक धरा देव। नानमुन चुरी के बदला हमर हाथ बड़े-बड़े कटारी अउ फरसा धरा देव। अब हम अपने हाथ ले ए जंगलहिन दाई के अछरा ल लहू-लहू म लाल करथन। हमर से ये का का करम करवत हव। अपन हाथ म बंदूक उठाय ऊंकर मुखिया किथे- अब इहा ले कोनो वापिस जाय के झन सोचव। मैं तुहर दुसमन नोहवं महूं तुहरे असन ए जंगल के बेटा अवं भाई। अपन जंगलहिन दाई के रक्छा खतिर ये रुप धरे हवं। 
बीराट किथे- ए जंगलहिन दाई बलि तो नई मांगे। मुखिया- बीराट ए जंगलहिन दाई बलि नइ मांगे। लेकिन ए जंगलहिन दाई खुदे बलि के बेदी म झन चड़ जाए एकर सेती हमला बलिदान देना हे। अपन भोलापन के बलिदान देना हे, अपन सिधापन के बलिदान देना हे। ए जंगल ले बाहिर झांक के तो देख बीराट सुवारथ के दुनिया म तोर जिना दुबर हो जही। अफसर साही अउ नेतागिरी के जाहर पुरा हवा म बगर गे हवय। मुखिया अउ बीराट के गोठ बात होते रिहिस तभे कठियापाली गांव के खभरी अइस। उहा के बजार म आए लोगन मन ल सिपाही मन धर के थाना लेगे हे। रात भर थाना म बइठार के राखे हे। मार पीट के पुछताछ करत हावय। अतका बात ल सुन के मुखिया के मन के आगी अऊ गुंगवागे। तुरते सबला बला के आदेस करिस जाव थाना के सिपाही मन बता दव। हम बिगर करनी के काकरो काल नइ बनन। जेन हमर जंगल के पै उघारही, जंगलिहा के बिनास चाहही ओकर इही दसा होही। बीराट घलो अपन गांव के लोगन मन ल बचाय बर थाना कोती दउड़ परथे। थाना के एकठन खोली म गांव के सबे सुजानी सियान मन संग ओकर ददा मंगेस घलो ओइले हे। 
थाना आके सिपाही मन कोती बंदूक तान देथे। एला देखके सिपाही मन गोली दागे के सुरु कर दिस। दूनो डहर ले ठाए-ठाए बंदूक चलिस। दूनो कोती के कतको मनखे घायल होगे कतको के परान निकलगे। तभो ले आखिर तक लड़ई चलते रिहिस। खोली म धंधाय गांव के मनखे मन ये जीवन मरन के तमासा ल यमराज बरोबर अपन आंखी ले देखत राहय। अंधाधुंध मार काट ले थाना के सिपाही मन ल ढलगाए के बाद सबे झन नकाब वाला मन गांव वाला ल छोड़ाइस। लड़ई म मुर्छा साथी ल उठा-उठा के लेगत गिस अउ मुर्दा म कपड़ा ढांक पांच मुठा माटी डार के फेर अपन जंगल म समागे। 
गांव वाला मन कोन ल बने काहय कोन ल गिनहा। मनखे ल मनखे मार गिराइस इही भर तो देख पइस सियनहा। चार ठन मुर्दा देह उही मेर परे रिहिस। मंगेस ह दम करके तिर म गिस अउ मुंह म ढकाय कपड़ा ल उघार के देखिस। गांव ले निकले चारो लइका के भुलाय दिन के सुरता ह फेर बकबक ले आंखी म छपगे। कलहर के रो डरिस। बात ल कोनो परतित नइ करही किके कोनो ल नइ बतइस। बीराट अउ ओकर तीनो संगवारी के देह म फेर कपड़ा ओढ़ा के किरिया करम करा दिस। कठियापाली ले उपजिस सवाल ऊपर सवाल। ये का होइस? कइसे होइस? फेर ए जगल के पै ल कोनो नइ जान पइस। बारा साल ले टूटे आस के डोरी जुरे के पहिली जरके खपगे। कोनजनी ओ चारो लइका जियत रितिस त अऊ कतका पै उघरे रइतिस। सियनहा ह कोनो कहिनी सिरजन करइया के किताब के पाना ल आधा लिख के छोड़े बरोबर छोड़ दिस। काबर कि पै के खुदी उकेरबे त घेरी-बेरी हमरे जंगलहिन दाई के कोरा ह लाल होही अउ कोख ले फेर बैर बांधे पूत पैदा हो जही। जिही मेर के आगी तिही मेर जुड़ा जए तउने ह बने। 
 ----------------------सिरागे --------------------------
लेखक - जयंत साहू 
पता- ग्राम डूण्डा, पोस्ट- सेजबहार
जिला/ तह. रायपुर छ.ग. 492015 
मो. 9826753304
jayantsahu9@gmail.com

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

my first STORY BOOK

my first STORY BOOK
>>Read online

Click this image in download PDF