छत्तीसगढ़ी कहानियॉ भाग ग्यारह - ईनाम
जाड़ के दिन म स्कूल जाय बर लइका मन ल गजब मनाय बर लागथे। बिहनिया ले जागय नहीं। जाग जही त नहाय नहीं अउ नहा लिही त पइसा धरे बिना टरय नही। एकरे सेती तो कुंती ह किसन ल रोजे ठठाथे। मनायेक ल मनाथे घलो नइच मानही त नंगत दोहनथे। दाई-ददा ह नइ पढ़े हन त का हागे फेर लइका ल पढ़ाबो किके गजब साध मरथे। हजार नखरा करही तबले मनाके स्कूल पठोथे। किसन के रोज के इही रोना राहे।
कुंती ह बिहनिया सबले आगू उठ के चुल्हा ल लिपही तेकर पाछु पानी भरही। तेकर पाछु किसन अउ ओकर ददा ल उठाथे। उठते साठ दूनों झन ल चाहा होना। किसन ह दाई चाहा देना काहते काहत उटथे। कुंती किथे मैं तोर बर चाहा लावथव ते जा के मुंह आंखी धो के आ जा। किसन बिना मुंह आंखी धोय चाहा म दतगे। ओकर ददा किथेे ले काही नइ होय देदे। पी के धो लिही लइका जात ताए। कुंती किथे अइसने किके लइका ल मुड़ी म चघाय हस। देखबे अब नहाय बर कतका नखरा लगाही तेला।
सहिच म ए लइका बड़ घेक्खर हे। हव कही त हव नहीं त नहीच हे। किथे न अप्पत के देखे देवता हारे तइसने बरोबर कुंती ह किसन ले हार जथे। स्कूल के बेरा होगे किके सबे काम ल छोड़ के आगू ओकरे तियारी करथे। नहवा-खोरा के कपड़ा लत्ता पहिरा के ओला स्कूल अमरा के आथे तेकर पाछु घर के अंगना दुवारी ल बाहरथे। कोठा-कुरिया के गोबर-चिखल ल हेरही।
कभू ओकर दाई पाके लेगे कभू ओर ददा ह सइकिल म चघा के लेगे। तिसरी कलास म आगे हवय तब ले अपन होके स्कूल जाय ल नइ धरिस। कभू-कभू तो दू बेर घलो अमराय ल परे। कुंती ल स्कूल म छोड़ के आय ताहन पाछू-पाछू टूरा घलो आ जाए।
गुरुजी ह धर बांध के राखे त चार घंटा बइठे। स्कूल के पढ़ई म तो किसन ह सबले कमजोर हे। गुरुजी ह पढ़ावे त ये टूरा ह गोठियाइ म मगन रहे। पढ़ई-लिखई म धियाने नइ धरे। कभू कागज ल चाबहि त कभू पिनसन खाही।
गुरुजी ह हाजरी ले बर सबे झन के नाम पुकारथे।
गनेस .. आय हवं सर। रमेस .. आय हवं सर। महेस .. आय हवं सर।
किसन .. सबो लइकामन किथे आय हे सर। गुरुजी किथे कस रे किसन कलास म बइठे हस अउ हाजरी नइ बोलस। किसन किथे मोर आना अउ ना आना एके बरोबर हे गुरुजी। ते लगा दे करना मोर हाजरी ल। गुरुजी किथे तोला कतको समझाले कुछू असर नइ होए। पहिली कक्षा म रेहे तभो अइसने, रेहे चौथी म आगेस तभो अइसने। अब्बड़ चुटूर-चुटूर मारथस, ठाढ़ हो अउ काली पढ़ाय रेहेव तेला सुना तो। किसन ह ठाढ़ होइस अउ मुड़ी ल गड़िया दिस। रोज चार डंडा मार खाथस तभो नइ सुधरस किके खिसीया के गुरुजी ह रुल ल उठइस। मार खाय बर किसन ह हाथ ल लमइस। गुरु जी किसन के ललियाए हाथ ल देख के किथे- ये कामा लागे हाबे रे।
किसन किथे लागे नइहे गुरुजी काली तिही ह ददा ल बताय रेहे होबे तोर टूरा ह पढ़े-लिखे नहीं किके। ओकरे सेती आज बिहनिया कून ददा सूटी म मारिस तेकरे रोल उपके हे। अतका ल सुन के गुरु जी ह रुल ल उबायच रइगे मारे के हिम्मत नइ करिस। किसन के मुड़ी म मया के हाथ रेगाइस अउ खुरसी म जाके के बइठगे। गुरुजी ह खुरसी म बइठे मने मन गुनंथे। ये लइका ल सोज रद्दा म लाय बर का उदीम करवं? सोचते-सोचत गुरुजी ह एक झन लइका के किताब के जील्द म लगे खिलाड़ी मन के फोटो ल देख डरिस। सचिन, सहवाग, सानिया, धोनी मोनी मनके अऊ अब्बड़ झन आनी-बानी खिलाड़ी मन के फोटो छपे रिहिस। ओ फोटो ल देख के गुरुजी के गुत्थी सुलझगे। किसन ल सोज रद्दा म लाय बर खेलकुद के आयोजन करे के योजना बनइस। गुरू जी ल विचारत देख के किसन किथे कइसे तोला सांप सुंग दिस का गुरूजी कलेचुप होगेस। मारे के मन हे त मार न तोर मार म मोर अक्कल अउ बल ह बाढ़थे। गुरुजी किथे बइठ जा बेटा अउ तोर बल बाढ़थे तेला सकेले रा स्कूल के खेलकूद म काम आही। खेलकूद के नाव ले सबो लइका खुस होगे।
दू घंटा पढ़ाय के बाद गुरुजी ह खेलकूद के जानकारी ब्लॉक आफिस म देना हे किके जलदी छुट्टी देके लइका मन ल घर भेज दिस। सबो लइका मन अपन-अपन घर चलदिस। फेर किसन ह घर जाय ल छोड़के स्कूल के मैदान म खेलत रिहिस। किसन ल देख के गुरुजी किथे काली जलदी आहू रे खेलकूद के तियारी कराहंू। खेले कूदे के बात सुन के किसन बड़ मगन होगे।
दुसरइया दिन सबो लइका साते बजे स्कूल आगे। किसन घलो बिना काकरो अमराय खुदे स्कूल आगे। गुरुजी के आवत ले किसन ह खुदे खेल के डाढ़ खिच डरे रिहिस। गुरुजी अइस त प्राथना होइस। ओरी-ओरी सबे लइका कलास म जाके बइठत गिस। गुरुजी घलो कलास म गिस अउ खेल खेले बर लइका मन ल पुछथे। गनेस ते का खेल म रिबे रे? रमेस ते का खेल म रिबे? पारी-पारी सबो लइका ल पुछ के नाम ल लिख डरिस। फेर किसन ल नइ पुछिस। किसन किथे मोर नाम ल नइ लिखे हस गुरूजी। गुरुजी किथे ते चिंता मत कर बेटा मैं सबोच खेल म तोर नाम लिख देहवं।
छब्बीस जनवरी के चार दिन अगाहू स्कूल म पढ़ई ह कम अउ खेलई ह जादा होगे। इही चार दिन के स्कूल अवइ किसन ल बने लागिस। काबर के पढ़ई कम अउ खेलई-कुदई ह ओला जादा भावे। खेलकूद के दिन किसन ह सबे खेल म भाग लिस अउ सबे म ईनाम घला जीतिस। कबड्डी, खोखो म किसन के टीम प्रथम। दउढ़ अउ लंबी कूद म घला अउवल। गोला फेक, उंची कूद अउ टेटंगी दउड़ म दूसरा आए रिहिस।
गुरुजी के आयोजन सफल होगे अउ सबे खेल होय के बाद ईनाम बाटे के बेरा आगे। छब्बीस जनवरी के दिन स्कूल म गांव भर के मनखे मन जुरयाय रिहिस। लइका मन राष्ट्रगीत गाए के बाद भारत माता के जय बोलइस अउ तिरंगा झंडा के सलामी लिस तेकर पाछु गांव के सरपंच ह झंडा फहरा के ओ दिन के कार्यक्रम ल सुरु करिस। कविता-भासन अउ गीत-नाटक होय के बाद आखिर म ईनाम बाटे के बेरा आइस।
गुरुजी ह नाम पुकारे अउ सरपंच ह अपन हाथ ले ईनाम ल देवे। लइका मन ईनाम ल झोके त देखइया मन ताली पीटे। पहिली तो सांस्कृतिक कार्यक्रम के इनामी बटिस तेकर पाछू खेलकूद के पारी अइस। खेलकूद म किसन ह त सात बेर ले गीस ईनाम झोके बर गीस। ईनाम बाटे के बेरा म गुरुजी ह किसन ल सबासी देके किथे सिरतोन म किसन ते आज अपन बल अउ विवेक ल देखा देस। पढ़ई म भले पछवाय हस फेर खेलकूद म सबले अगवागेस। अइसने मन लगाके खेलबे त एक दिन ते जरुर अपन नाम रोसन करबे। खेल के सातो ईनाम ल तो तोला दे डरेवं अउ आठवा ईनाम मैं अपन आसिरवाद तोला देवथवं। बाकी लइका मन एकक दूदी ठन ईनाम पाय रिहिस फेर किसन ह सात ठन ईनाम पाय रिहिस अउ आठवा म गुरुजी के परम आसिस।
ये ईनाम ला देख के ओकर दाई-ददा मन गजब खुस हो जथे। किसन के सबे दिन के गलती ल भुलाके ओकर दाई-ददा दूनो ह छाती म ओधा लेथे। ए ईनाम ह तो किसन के जिनगी के रद्दा बदल दिस। खेलकूद के दूसरइया दिन छुट्टी परिस अउ तिसरइया दिन किसन ह बिना काकरो बोले अपन मनके स्कूल जाए बर तइयार हो जथे। अब तो ओकर दाई-ददा के घलो किसन कोती ले निसफिकिर होगे।
जब ले किसन ह छब्बीस जनवरी के ईनाम पाहे तब ले खेलकूद म बने धियान देवथे। हर साल खेल म भाग ले के अच्छा खिलाड़ी बनगे। एक दिन ब्लॉक कबड्डी टीम कुरुद म किसन के चयन होगे ओकर बाद उहा ले धमतरी जिला के टीम म। जिला के टीम म घलो किसन ह अच्छा खेल के परदरसन करिस त ओला आलराउडर के खिताब घला मिलीस।
अब तो किसन ह गांव के गदहा टूरा नइ रइगै कबड्डी के चेमपियन होगे हे। खेल म आगू बाड़हे के सपना ह ओला पढ़ई म घला हूसियार बना दिस। हाई स्कूल के पढ़ई करे बर कुरुद जाथे। कुरुद स्कूल डहर ले आज ओहा राजधानी के टीम म खेले बर रइपुर गे हाबय। अब वो दिन दूरिहा नइये जब किसन ह अपन देस बर खेलही। किसन के ये बदलाव ल देख के घरवाला अउ गुरुजी के संगे-संग गांव वाला मन घलो बड़ खुस हे।
किसन ल गांव के स्कूल छोड़े नौ साल होगे हे। फेर गांव के स्कूल म जब भी खेलकूद होथे सबे झन एक घाव किसन ल जरुर सोरियाथे। गुरुजी ह हर छब्बीस जनवरी के ईनाम बांटे के बेरा अपन भासन म घलो किसन के नाम जरुर लेथे। गुरुजी किथे अइसने उन्नीस सौ नब्बे के छब्बीस जनवरी के दिन मैं अपन हाथ ले किसन ल ईनाम बाटे रेहेवं। आज देख किसन ह कतका ईनाम अउ नाम पावथे। अब कोनो दाई-ददा ये झन सोचव कि मोर लइका ह गद्हा हे त उमर भर गद्हा रही। कोनो न कोनो रद्दा म वहू ह अपन नाव रोसन करही। ओला जरुरत हे रद्दा देखाय के अउ ओकर हौसला बड़ाय के। अतका ल सुन के सबो झन ताली बजाथे अउ कार्यक्रम के आखरी म सब झन परसाद पाके गुरुजी के विवेक के गुनगान करत अपन-अपन घर चल देथे।
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लेखक - जयंत साहू
पता- ग्राम डूण्डा, पोस्ट- सेजबहार
जिला/ तह. रायपुर छ.ग. 492015
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jayantsahu9@gamil.com
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