सुख के दिन

छत्तीसगढ़ी कहानियॉ भाग दस - सुख के दिन

बरसत पानी म नांगर जोतइया। घपटे अंधयारी म दउरी फंदइया। कतको जड़काला परय जांगर नइ कापय। कमइया ल कोन माटी म गढ़े हे गढ़इया ह तेन ल उही जाने। सिरतोन म विधाता ह बनि करइया के तन अउ मन ल अलगेच बनाए हे तभे तो सुखमिन ह नारी परानी होके घर के नांगर ल थामहे हे। गांव के सब मरद मन के बरोबरी करत दिन भर म आधा अक्कड़ ल जोत डारथे। घर के सियानी के पागा बांधे सबे काम ल उरकावथे। सुखमिन ह जब ले सालिक घर आहे सुख ल जाने नही। सास के मुंह नइ देखे हे ससुर ह खटिया धरे हे। दू झन लइका ओकर कोरा म हे। ओकर घरवाला सालिक के पांच साल होगे कांहि आरो नइ मिलत हाबे।
गांव म सब बनि करे बर परदेस जाए तेमा सालिक घलो जाए। पइसा-कउड़ी के जरवत राहे त गांव म कोनो न कोनो आत-जात रहे तेकर करा पठो देवे। अपन ह साल के साल पइसा-कउड़ी कमा के, खेती-किसानी के दिन म एक_ा गांव आए अउ अपन किसानी बुता ल करे। खेती-किसानी के काम सिराय के बाद फेर परदेस म बनी करे बर निकल जाय। आन दरी तो लगते असाढ़ म आ जात रिहिस फेर पांच बच्छर होगे आए नइहे। गांव के मन एकक करके घर लहुंटगे फेर सालिक के सोर पता नइहे। सुखमिन ह पुछथे गांव के मन ल किथे ए भ_ा म नइहे, ओ भ_ा म होही। उहां पता करिस त किथे इहो नइहे।
सुखमिन ल संसो होगे काहां होही, कइसन हाल म होही। सोर पता ले बर कोनो डहर निकलतिस त घर म कोनो सियान नइहे। गांव के कोनो-कोनो मन ल पुछिस त किथे सालिक ह बम्बई के कारखाना म कमात होही। अब सुखमिन ह सालिक ल खोजे बर जाही त घर-दुवार ल कोन देखही। सुखमिन ह सालिक के आए के आस म घर के सियानी ल चलावथे। लोग लइका के पढ़ई, ससुर के दवई। नारी परानी होके सबे काम ल कर लेथे इही गजब बड़ बात हे। घर म सियान के नाम म ससुर भर हाबे तेनो ह उठन-बइठन नइ सके। बपरी सुखमिन ह घर के काम ल करके खेत जाथे। खेत ले आथे त ससुर के जतन पानी करथे। अपन मन के दरद ल मने म दोब लेथे। घर-दुवार ल छोड़ के अपन आदमी ल खोजे ल तो घलो नइ जा सके। सुरता करके रोज एक आंसू रो लेथे।
एक दिन संझउती बेरा सुखमिन ह खेत ले आवत रिहिस। वोतके बेरा चरबज्जी बस आए रिहिस। चार बजे के आखरी बस आए ते पाय के मनमाड़़े भीड़ रिथे। बस ठाड़ होइस अउ ओरी-ओरी सबे सवारी उतरिस। आखिर म एक झन बुड़वा असन मनखे ल कनडेकटर ह धर के उतारिस। ओला देख के बस तीर म गजब भीड़ जुरयागे। मइलाहा असन चद्दर ओड़हे ओ डोकरा ल गांव के मन धर के सड़क तीर के होटल म लेगिन।
 दिन बुड़गे रिहिस अंधियार मन मनखे नइ चिनहाइस। चिमनी ल लान के अंजोर म देखिस त सालिक आए। खांसी-खोखी अउ जर-बुखार म अकबकाय। कमजोरी म निच्चट धकधकागे रिहिस। आंखी-कान खुसर गे रिहिस। सालिक ल देख के सुखमिन ह गजब गमन होगे। ओकर बर तो मानो दुनिया के जम्मो सुख आगे। फेर ओकर सुख जादा बेरा ले नइ ठाहरिस।
पांच साल बाद पति मिलिस वहू म अधमरा। सालिक किथे मोला टीबी बिमारी धरे हे। पइसा कमाय के रोस म रोज के कारखाना के धुया ल पी पीके ये रोग ल लगाय हव। डाक्टर ह आजे काल के मेहमान अस केहे हे ते पाय के अपन जीनगी के आखरी दिन अपन गांव म कांटे बर आय हवं। सुखमिन किथे अतका ले दिन काहा रेहेव हो, हमन तोला गजब खोजेन। 
सालिक किथे- मेहा अपन बीमारी ल जान डरे रेहेवं अउ फेर इहा अतेव तोर उपर अउ बोझा होतेव। इही पाय के मैं घर-परिवार ले भागे-भागे फिरत रेहेवं। सुखमिन- किथे तुही मन तो मोर पति देवता आव। अपन आप ल बोझा काबर किथव। हमरे सुख बर तो परदेस बनि कमाय बर गे रेहेव। सुखमिन ह पांव परिस अउ धर के अपन घर लानिस। बिमरहा राहय चाहे कनवा-खोरवा पति ह पति होथे। सती अनसइया के धरती म सुखमिन जइसन नारी ह जनम धरे हे। कइसे बीमार पति ल छोड़ देतिस।
सालिक ल घर म बइठार के आरती उतारिस। बिहनिया ले गांव के पुरोहित करा गिस अउ बला के सतनरायन के कथा करा डरिस। सालिक ह घर लहुंट आ जए कइके सुखमिन ह गांव के देवधामी म बदना घलो बदे रिहिस। संझा कुन गांवे के दुकान म एक्कइस ठन नरियर लिस। अउ ओरी-ओरी सबो देबी-देवता मन म जाके चड़ाइस। सुखमिन अब मगन होगे अउ अपन दुख ल बिसराके घर परवार ल बने चलावथे। दूनो झन लइका ल पढ़ाथे। अपन ह भले पढ़े-लिखे नइहे फेर पढ़ई-लिखई के महत्ता ल जानथे। अबतो सुखमिन के एके सपना हे वोकर लइका मन पढ़-लिख के बने असन काम करके घर के आधा बोझा उठाए। इही सपना संजो के अपन पेट काट-काट के लइका ल पढ़ावथे। ससुर अउ पति के सेवा करके बहु अउ पत्नी के धरम ल घलो निभावथे।
गांव म खेती-किसानी अउ बनि-भुती के परसादे अपन जीवन ल चलावथे। अकेल्ला नारी परानी होके चरचर ठन जीव ल पोसथे। सुखमिन के इही बेवहार ल देखके गांव के मन ओकर साहमत बर आगू आ जथे। फेर सुखमिन काकरो सो रुपिया-पइसा के मदद नइ मांगिस। 
वोतो काहय मोला काम बुता देवव जेकर बनि ले मंै घर ल चलाहूं। मैं दया अउ भीख ले अपन लोग लइका ल नइ पोसवं। रुखा-सुखा दिन बितत गिस। लइका मन बाड़हत गिस। सुखमिन ल का पढ़ई के भूत धरे रिहिस ते लइका मन ल घड़ी-घड़ी पढ़हेच बर बरजय। लइका मन ल बेरा म तियार करके इसकूल पठोवे। कापी-किताब अउ इसकूल के सरी चीज ल आगू के आगू लान के मड़ावे। कोनो-कोनो किथे सुखमिन तोर टूरा मन ल घलो काम बुता म लानते नही, त सुखमिन किथे मोर खून पछीना संग भले मोर मास बेचा जए फेर मैं अपन लइका मन के पढ़ई छोड़ा के वोमन ल काम म नइ लागवं। लइका मन गजब मेहनती रिहिस। दाई ह बाहिर कमाय बर जाए राहे त अपन मन इसकूल ले आके घर के काम कर डरे। अपन बाप सालिक अउ बबा के जतन पानी घलो करे। बाकी बेरा म सिरीफ पढ़ई बुता ल करे।
वोकर सेवा भाव एक दिन भगवान के आंखी म दिखिस। लइका मन बने ढंग ले पढ़-लिख के हूसियार होगे। एक झन हा गांव के इसकूल म मास्टर होगे अउ दूसर ह अभी डाक्टरी पढ़त हाबे। अबतो सुखमिन बर सुख के दिन आगे। लइका ह ओकर मुड़ी के बोझा ल बोहे के लइक होगे। जेन सुख बर सुखमिन ह अपन लहू ल पेर के घर ल चलइस वो सुख ल पा लिस। बेटा मन अब वोला थोरको काम करन नइ देवे। एक बेर के पसिया म गुजारा करइया सुखमिन ह अब बेटा मन के परसादे घी के रोटी खाथे। दिन ह अब ससुर अउ पति के सेवा म बितथे। सुखमिन के दिन बहुरत देखके गांव वाला मन किथे गरीबी म घलो बेटा मन ला पढ़ाइस लिखाइस तेकर सेती सुखमिन ह आज सुख के दिन देखत हे।
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लेखक - जयंत साहू 
पता- ग्राम डूण्डा, पोस्ट- सेजबहार
जिला/ तह. रायपुर छ.ग. 492015 
मो. 9826753304
jayantsahu9@gmail.com

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