मया अउ माया

छत्तीसगढ़ी कहानियॉ भाग नौ- मया अउ माया



गजब दिन बाद तरिया पार के बुढ़ादेव के मंदिर म मनमाड़े भीड़ जुरियाय हे। कोनो नरियर चड़ावथे कोनो फूल पान चड़ावथे। उहा के अगरबत्ती अउ हूम धूप ले तो सरी गांव ममहावे। मंदिर भितरी पिड़हा म पलतियाय एक झन साधू महारज बइठे हे, ओकरे दरस बर पूरा गांव उमड़ गे हावय। मंदिर के दुवारी के आत ले दरस करईया मन लमियागे हे। बाबू पिला मन के अलग अउ नोनी मन के अलग लाइन लगे हे। भीड़ ल देखे म अइसे लागथे जानो माने साकछात देवता ह मंदिर म बिराजमान होगे होही। ढकलिक-ढकला म बोजाय परत हे तभो ले एक नजर दरस के आस बर लोगन मन ह मंदिर म जुझे हे। 

दरस करइया मन एकक करके भीतर जात जाए अउ अपन-अपन भाग ल जान के बाहिर आत जाए। उही गांव के रहईया गनेस ह दरस करके अईस त बाहिर म खड़े रामू ह पुछथे कस जी ओ साधू आहे तेन ह का लेथे अउ काला देख के बताथे। गनेस किथे काहीच नइ लय ते जाबे ताहन तोर थोथना ल देखही अउ हवन जलाहे तेमा हूम ल डारही। ताहन तोर सबे ल फरिफरा बता दिही। साधू महराज ह रुपिया पइसा काही नइ मांगे तोर उचित के दान देवता म चड़ा देबे। अतका ल सुन के रामू घलो साधू के दरस करे के मन बनइस अउ लाइन म लगगे।

धीरे-धीरे लाइन सरकत-सरकत रामू के पारी आइस। साधू महराज ह रामू ल दू गड़ी हूम ल दिस आगी म छोड़ाइस कलस म बुड़े दुबी पान के आगी म ऑचमन करईस। साधू किथे तोर नाम रा अक्षर ले आथे। रामू किहिस हव महराज मोर रामू नाव हे। साधू किथे तोर बाई के नाम क अक्षर ले आथे। रामू- हव महराज मोर बाई के नाव कमला हे। साधू- तोर तीन बेटी अउ एक बेटा हे। रामू किथे हहो महराज।

साधू के सत बचन सून के रामू किथे- तेतो सबे ल जानथस साधू महराज मोर ददा के बारे म बताते। महराज ह आंखी मुंद के धियान लगइस अउ मने मन म मंतर बड़बड़ाइस। थोरकेच म आंखी उघारके किहिस तोर बाप गांव म कोतवाली करे अउ वोला बीते बीस बरस होगे हे। अतका ल सुन के रामू ह मन मगन होगे अउ सौ रुपिया के नोट ल निकाल के साधू धरावत रिहिस। 
साधू किथे- हम रुपिया पइसा नइ लेवन बेटा। तोला देच बर हे त ये रुपिया ल बुढ़ादेव के मंदिर म चड़ा दे। रामू सौ के एकठन अऊ नोट निकालिस अउ चड़ा दिस। रामू पुछिस कोन आव महराज काहां ले आय हवं। साधू किथे हम तो रमता जोगी आन जिहे ठहर गेन तिही ल हमर घर दुवार जान।

साधु महराज के गियान अउ महानता के सेती गांव वाला मन ओला अपने गांव अमलेसर म डेरा जमाय के बिनती करथे। साधू ह गांव वाला मन के बात मान के उही मंदिर म अपन धुनी रमा दिस। ओरी-ओरी गांव के सबे मनखे मन साधू के मुंह ले अपन भाग के आज अउ काल ल जान डरिस। बुढ़ादेव के मंदिर म धुनी रमाय साधू ह सबला हवन के आगी म हुम देवावे अउ भविष्य बतावे तेकर सेती गांव म ओहा हूमदेवा महराज के नाम परसिध होगे। दिनो दिन हूमदेवा महराज के सत ह बगरत गिस। लोगन मन अब अपन इच्छा ले चाउर दार रुपिया पइसा चढ़ावत राहय उही म महराज के गुुजारा चलय। 
अब तो तीर तखार के गांव वाला मन घलो हूमदेवा के दरस करे बर आए लगगे। जेकर जइसे इच्छा तइसे अपन उचित के दान बुढ़ादेव म चड़ावा चड़ा के हूमदेवा के असिस पा लय। देखते-देखत दूवे साल के दान म बुढ़ादेव के बड़ेजन मंदिर बनगे। मंदिर के तो रंग रुप बदल गे फेर साधू के आदत बेवहार थोरको नइ बदलिस। धन दौलत के माया मोह ओकर भीतर आबे नइ करिस। कोन जाने अउ का पाय के आस म हूमदेवा महराज धुनी रामाय हे। काकर आय के आस म ओकर आंखी ह चोबीसो घंटा जागत हे तेला उही जाने।

हसउद वाली सांति ह घलो एक दिन अमलेसर म आय हूमदेवा महराज के किस्सा सुनिस। सांति के सुखाय घाव फेर हरियागे। सांति ह जेन मन के पिरा ल भुलाय बर दस कोस दुरिहा हसउद आ बसे रिहिस उही पिरा ह आज फेर ओकर मन म लोटगे। घड़ी-घड़ी बेटा के सुध सताय लगिस। आखिर अपने मन ले हार के सांति ह अमलेसर जाय के सुध लमइस।
सांति ह अमलेसर के बिहाता बहू ये। जब उहा ले निकलिस त अपन देह ल मुर्दा जान के निकलिस ताहन फेर दूबारा उहा पावं नइ धरिस। गांव अवई-जवई तो दूरिहा अमलेसर के नाव सुन के कान ल मुंद लय। सांति ह चालिस साल बाद ओ गांव म जाय के मन करे हे उहू म अपन बेटा के खातिर। अमलेसर जाय बर तो सांति ह घर ले तो निकलगे फेर ओकर मन ह आजो उहा जाए ल नइ काहथे। मया ले हारे अउ मन ल मारे सांति ह नानकुन झोला म सेर चाउर धर के घर ले निकलगे। धीरे-धीरे रद्दा रेंगत अपन बिहा के दिन सुरता करथे।

आगू के दिन म बिहा के आगू नोनी-बाबू ल देखे के रित नइ रिहिस। दाई-ददा ह जेकर अछरा म बांध दिस, जीयत मरत ले ओकरे संग जोड़ी जुड़ जथे। सांति ह बड़ खुसी-खुसी हसउद ले बिहा के अमलेसर आय रिहिस। किथे बिहा के बाद बेटी के दूसरा जनम होथे। बाप के घर ले निकल के ससुर के अंगना म पांव धरथे। ये तो अपन-अपन भाग के कोन ह कइसन घर-संसार ल पाथे। नवा-नवा म तो काही पै नइ दिखिस फेर चारे महीना के बिते ले देरानी-जेठानी संग तारी नइ पटिस। रोज दिन लिखरी-लिखरी बात बर खिटिर-पिटिर होवत राहय।
गरीब घर के बेटी अपन जोरन म दाई-ददा के आसिस के छोड़े अउ कुछू नइ लाने रिहिस। सांति ह देरानी-जेठानी के गारी बखाना के बात ल सास ल बतावे त ओकर सास उलटा ओखरे बर बउरा जए। सांति के देरानी-जेठानी मन तो बड़े-बड़े घर ले गे रिहिस। अपन जोरन म हंडा भर-भर दाहिज धर के लाने रिहिस ते पाय के ससुर घलो उही मन ल भावे। बपरी गरीबिन अब काकर सो अपन दुख पीरा बिसरातिस।

सास-ससुर, देरानी-जेठानी ले भरे पूरे परवार रई के भी सांति ह अकेल्ला हो जए। सांति के घरवाला तो मंधवा। घर म का होवथे ओला काही के संसो नइ हे। सांति के तो एक नइ सुनय तभो ले बिचारी ह सबो के ताना सुनत ससुरार म जीव दे बइठे हे। सांति ल ओ मन कभू अपन घर के बहु नइ जानिस। जब देखबे तब नौकर बरोबर ओला हांकत रइथे। बिन मुंह के गाय बरोबर गेेरवा म बंधाय हे त बने हे कोनो दिन मुंह म कही की परथे त मंधवा के मार खावे। सांति ह कांही नइ काहय तभो ले चलवंतिन मन लड़े के ओखी खोजत रइथे। 
एक दिन रिस के मारे सांति ह अपन मइके चल दिस। दाई-ददा ह दिन भर मया ले गोठिया लिस। संझाकुन समझा बुझा के फेर ससुरार अमरा दिस। नारी जनम धरे हस त दुख भोगे ल परही। नारी देह के उपर मन के बस थोरहे चलही नइ चाह के भी सांति के पांव भारी होगे। अब तो कहू जा घलो नइ सके। हरु गरु हे ते पाय के नरक कस दुनिया म ओड़ा दताय हे। नौ महिना के बाद गरीबिन के कोख ले भागी के जनम होगे। इही ओढ़र म मोरो भाग सवरही किके सांति के मन म खुसी हमांगे। काबर की बेटा के मुह देखके तो बड़े-बड़े अधर्मी के धरम जाग जथे।

भागी बेटा के सेती सांति के भाग म विधाता ह चार साल के सुख लिखे रिहिस होही। तभे तो चार साल सास-ससुर, देरानी-जेठनी, काकरो ताना नइ सुनइस। भागी ह महतारी के दूध ल छोड़ के अब पसिया पेज खाय ल धर लिस। लइका मुंह म कॉवरा का गिस गरीबिन के भाग के सुख अटागे। सांति ह फेर बात-बात म दाहिज के ठोसरा खावे। रोज-रोज के ठोसरा म दाना-पानी हर ओकर अंग नइ लगिस अउ संसो के घुन म सुखा के सांति ह काड़ी होगे रिहिस।
 सास ससुर ल तो छोड़ पति ह घलो सांति के जतन-पानी बर जिकर नइ करिस। बिना दाहिज के आए रिहिस ते पाय के बपरी के गत बिगड़त हे। सांति ल बीमरहिन होगे किके मंधवा गोसइया ह अऊ नवा गोसइन बना लिस। डउका जात के का हे जांगर के चलत ले डउकी बनाही लोक लाज के डर तो नारी परानी ल हे। सांति के सउत तो सबले जादा चलचला हे बात-बात म कटकिट-कटकिट करथे। हड़िया के डर म कांपत सांति बर तो अऊ परई आगे। अब ये घर म मैं नइ खटाववं किके सांति अपन लइका ल धर के मइके म निकलगे। अपन गिस ते गिस लइका ल घलो लेगे किके सास ससुर ह पछलिग्गा ओकर मइके आगे। सांति ह भागी ल कोरा म लुकाय रिहिस तेला नंगा के लान लिस।

गांव म बइठका सकेल के सांति अउ मंधवा के छोड़ा-छाड़ी करा दिस। सांति ल अपन ससुरार के लड़ई-झगरा ले मुक्ती मिलगे फेर अपन भागी के सकला नइ कर सकिस। लइका ल पंचइत ह ओकर बाप के हिले लगा दिस। सांति ह लइका ल अपने तिर राखे गर गजब अरजी बिनती करिस। मोर लइका ल मोला देदे ... मोर लइका ल मोला देदव ... कलप-कलप के रोवत हे। तभो ले पंचइत ह लइका ल सांति ल नइ देवइस। 
सांति ह तुहर मुंह देखना तो छोड़ गांव म पांव तको नइ मड़ाव किके दुच्छा हाथ पंचइत ले घर लहूटगे। दूयेच साल के गे ले अचानक ओकर लइका भागी ह घर ले लापता होगे। गजब खोजिस फेर कोनो डहर सोर पता नइ मिलिस। कोनो घर ले खेदार दिस धन अपने ह घर ले निकल के कोनो डहर चलदिस ते काहि जानबा नइ होइस। सांति ह अपन कोत ले गजब खोजिस। जेने डहर जाय के आस मिलय तेने कोती दउड़ जए। सांति के भाग म भागी के मया लिखेच नइ रिहिस।

सगे बाप अउ मोसी दाई ह अपन लोग लइका के मया म ओ लइका ल भुलागे। फेर सांति ह अपन बियाय लइका ल कइसे भुलातिस। सांति ल लइका खोजत आधा उमर होगे फेर बपरी अभागिन ह आज ले अपन बेटा नइ पाय हे।
हूमदेवा महराज के नाव सुन के सांति के मन म फेर आस जागे हे। लइका नइ मिलही त ओकर सोर पता तो मिलही किके मने मन सोचत अमलेसर के सियार ल खुंदत हे। सांति ह जवानी म निकले रिहिस ते बुढ़ापा म लइका के खतिर फेर अमलेसर म पांव मड़ावत हे। पंदरा सौ के बस्ती ह अब पंदरा हजार आबादी के सहर बनगे रिहिस। कोनो चिनहार मनखे नइ दिखत रिहिस। सांति ह एकझन दुकान वाला ल पुछिस हूमदेवा महराज ह कते मेर हे ग। दुकान वाला किथे बुढ़ादेव मंदिर म रइथे वो। सांति ह बुढ़ादेव के मंदिर ल जवानी के दिन म देखे रिहिस। सुरता करत धुसुर-धुसुर मंदिर के लकठा म पहुचगे।

तरिया पार के नानकुन मंदिर के म जगा बड़ेकजन मंदिर बने रिहिस। हो न हो इही होही साधू के डेरा किके सांति ह भितरी म गिस। लाम-लाम मेछा डाढ़ही कनिहा के आत ले लटियारा चुंदी, धुनि रमाय आसन जमाय बइठे रिहिस। सांति ह जाके हवन के आगी म दू गड़ी हूम ल डारिस कलस के जल ले आचंमन करिस अउ बुढ़ादेव के आगु मुंडी नवइस। सांति के छईहा परते ही साधू महराज के आंखी टप ले उघरगे। सांति ल देखते ही आठो पाहर जागत ओकर आंखी म आंसू भरगे। साधू के आंखी अइसे सुकून भरे लिपकी परय जइसे ओकरे अगोरा म बरसो जागे होही। तन ल मन के बस म करत सुख भरे सांस लिस।  
साधू महराज अपन नजर भर सांति ल देखत किथे- तै अपन दूधमुहा लइका ल ससुरार म छोड़ के निकले हस दाई अउ आज ले मइके म बइठेहस। ते जेन लइका के खोज म आय हस ओहा तो कब के जोगी होगे हे। लइका के आरो देवा के साधू ह सांति के सुखाय मया ल उभरा दिस। सांति ह लइका के सुरता म सुसक ससुक के रो डरिस। सिरतोन काहथव महराज मैं अपन लइका के खोज म आए हवं। हूमदेवा के पांव म गिर के किथे मोला मोर लइका के पता बता दव महराज। मैं अपन लइका बिना न जीये सकत हवं अउ न मरे सकत हवं। एक नजर ओला देख लेतेवं त मोरो जीव जुड़ा जतिस।

साधू किथे मोर पांव ल झन धर दाइ तै तो मोर माता समान हस। तोर लइका ह तोरे सेती जोगी होहे। नानपन म तोर कोरा छूटगे। मोसी दाई ले मया के आस लगाये त वहू धुतकार दिस। मोसी दाई अपन बियाय लइका के दुलार म तोर भागी के भाग म दुख-पिरा लिख दिस। तोर लइका बर सबे के मया अटागे रिहिस। मोसी दाई के दू ठन आंखी होगे रिहिस। एक ठन आंखी म अपन बियाय बर अगाध मया राहय अउ दूसर आंखी ह तोर बेटा बर ललियाय राहय। एक ठन थारी म घीव के रोटी आमा के अथान। दूसर म सूक्खा रोटी अउ नून मिरचा के चटनी। रो-रो के दिन काटिस अभागा। जे दिन हद ले बाहिर होगे अतियाचार, भगागे लइका छोड़ के घर दुवार। बड़ भागमानी रिहिस लइका जोन पालिस साधू के संगत। सत संगत नइ मिलतिस त कोन जनी लइका के का गत होतिस। 
बेटा के हाल चाल सुनत सांति के आंसू टप- टप हूमदेवा महराज के हवन म गिरत रिहिस। बतावत-बतावत साधू के आंखी ले घलो आंसू के धार बोहाय लगगे। सांति किथे हूमदेवा महराज तूमन मोर भागी के नस-नस के खबर धरे हव। आज के बेरा म कोनो गियानी म अतका बल नइये जोन काकरो भीतर के पिरा ल भांप सके। तै तो घटना के अइसे बरन करे हस जइसे तोरे उपर बिते हे। हो न हो तिही ह मोर लइका आस किके सांति ह साधू ल पोटार लीस। महतारी के मया के आगू साधू के माया नइ चलिस।

सांति के छाती म ओधे-ओधे साधू किथे- हव दाई मिही तोर लइका भागी आवं। फेर मैं ह अब माया मोह छोड़ के बैरागी होगे हवं। मंै गांव के मन के परछो ले खातिर आय रेहेव। घर हाल चाल जाने बर आय रेहेव। फेर ये गांव के मन तो मोला अपन गांव के लइका नहीं हूमदेवा महराज के रुप म चिनहीस। दाई तै ह आज मोला अपन बेटा के रुप म चिन डरेस।
साधू ह सांति के पांव छू के किहिस माता मैं ह तो अब तोला बेटा के सुख न नइ दे सकवं। अब तहू ह ये बात ल इही मेर बिसर जा अउ लहूट ता अपन अंगना। महू ल जाना हे अपन ठिकाना। जेन कारज बर मैं इहा आय रेहेव ओ आज पूरा होगे। साधू महराज ह सांति के आंसू पोछिस अउ वोकर मुड़ी म हाथ रख के किहिस दाई आज ले ना मैं तोर बेटा अव अउ ना तै मोर महतारी। तै अपन दुनिया म लहुट जा। मैं अपन दुनिया म जाथवं। अतका कइके साधू ह आंखी मुंद के धियान म बइठगे। सांति ह घलो आंखी उघारिस अउ जय हूमदेेवा किके महराज के जय जयकार करत उही पांव अपन गांव लहुटगे। ओ दिन के बाद गांव के मंदिर म कोनो ह हूमदेवा महराज ल नइ देखिस। काहा गिस काबर गिस। जोगी के मन के बात जोगी जाने रे भाई।
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लेखक - जयंत साहू 
पता- ग्राम डूण्डा, पोस्ट- सेजबहार
जिला/ तह. रायपुर छ.ग. 492015 
मो. 9826753304
jayantsahu9@gmail.com

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