दुरपती

छत्तीसगढ़ी कहानियॉ भाग आठ- दुरपती


गांव के लीला चौरा म संझउती होइस ताहन गजब भीड़ जुरिया जथे। लइका मन तो दिन बुड़े के पहिलीच ले अपन-अपन बर जगह पोगरा डरथे। संझकेरहे जेवन करके घलो आ जथे। भीतर कोती सब कलाकार मन संभरथे अउ बाहिर म देखइया मन के भीड़ जुरियावथे। अब अगोरा हे त राम लीला सुरु होय के। 
लीला ल गांव के मनखे मन गंगा कस फरिहर अउ प्रयाग कस पावन मानथे। घरो घर ले आरती के थारी आथे। गांव के लीला चौरा म संउहत भगवान राम, लछमन, माता जानकी अउ बीर हनुमान बिराज मन होथे। मंगल आरती के संग सुरु होथे राम जी के लीला।
दुरपती ह रात कन के जेवन बना के अपन सहेली मन संग लीला देखे बर निकलथे। ददा ह खिसिया के किथे- घर के बुता काम छुट जए ते छुट जए फेर तोर लीला हर झन छुटे। दे मोला कावंरा खाय बर ताहन जाबे।
दुरपती किथे- दाई करा मांग ले न गा। लीला सुरु होगे हम जाथन हमर सहेली मन अगोरत होही। साल ल ओड़हिस, बोरा धरिस अउ निकलगे। सबो सहेली एके करा जुरिया के बइठथे।
लीला ल बड़ धियान से देखथे। लछमन के पाठ के बेरा तो दुरपती लिपकी घलो नइ मारे। ओकर सहेली मन ह गोठिवात रिथे तेन मन ल सांत करा देथे। सहेली मन दुरपती के परेम ले अनजान नइ रिहिस। सबो झन जाने येहा लीला म रमायन देखे बर नइ आवे। येतो लीला म लछमन के पाठ करथे ते राधे ल देखे बर आथे।
राधे अउ दुरपती म अगास परेम रिहिस। राधे ह अपन पाठ म बुड़े रिहिस त दुरपती ह राधे के परेम म बुड़े रिहिस। जभे लीला सिरातिस तभे दुरपती ह घर आतिस। अपन संग म अपन सेहली मन ल घलो बइठार के राखे राहय।
रात के लीला सिरावे ताहन बिहनिया राधे ह तरिया के पार म ओड़ा ल दे राहय। दुरपती ह थारी बरतन धोय बर आवे। राधे ह बइला-भइसा धोवत बइठे राहय। अपन-अपन काम म दूनो रमे हे फेर दूनो के नजर ह एक दूसर म लगे हे। नजर ले नजर जुड़े इसारा-इसारा म गोठ बात होय।
राधे अउ दुरपती के मया ह गांव भर म आगी बरोबर गुंगवागे। दूनो के घर म उकर मया के सोर उड़गे। एके जात सगा के रिहिस। दूनो डहर केसियान मन मिल बइठ के लइका मन के खुसी के खातिर बिहाव करे के फैसला करिस अउ फलदान ल तुरते मड़ा दिस।
गांव के सगा सोधर कतेक चोचला लगाही। वोकर चूलहा ल ए देखे, एकर चूलहा ल वो देखे। सगा मन अपन घर ले गोड़ धो के दुरपती घर आगे। सगा घर गोड़ धोय के जरुरते नइ हे। ए पारा ले ओ पारा जाय म कतेक धुररा उड़ही। फेर सगा घर गोड़ धोय के नेंग तो छुटे ल परही।
फलदान म कोनो बाहिर के सगा दिखबे नइ करे। राधे डहर ओकर लीला पालटी वाला अउ दुरपती कोती उकर घर के अउ दू चार झन सहेली भइगे। राम, लछमन, भरत, सतरोहन, रावन, मेंगनाथ, हनुमान, सीता, मंदोदरी, सुरपनक्खा, जोक्कड़ अउ संग म तबलची, बेंजो मास्टर, ढोलकाहा मन घलो पधारे रिहिस।
फलदान के बेरा लीला के महराज ह दोहा अउ चौपाई पढ़े- मंगल भवन अमंगल हारी, कबहू सुदसरत अजिर बिहारी राम सियाराम राम सियाराम जै जै राम। राधे दुरपती के फलदान होवे सबो संगी संग राम लीला मंडली ह आवे राम सियाराम जै जै राम।
अइसन बखत म हॉसी मजाक तो होते रिथे फेर जइसन सगा रिहिस तइसन हासी मजाक चलिस। दुरपती अउ राधे के फलदान निपटगे। संझा होवथे किके सबे झन रेसल खोली म चल दिस। रात कन फेर लीला सुरु होइस। दुरपती ह अपन सहेली मन संग देखे बर बइठे हे।
राम के पाठ आथे त दुरपती के सहेली मन किथे मुड़ी ल ढांक न वो तोर कूराससुर ह आगे। दुरपती के दूपट्टा ल धरिस अउ मुड़ी ढांक दिस। लछमन के पाठ आवे त दुरपती ह लाज के मारे मुड़ी ल गड़िया लेवे। वोकर सहेली मन राम लीला देखे ल छोड़के दुरपती संग दिल्लगी लगाय।
सहेली मन के घेरी-बेरी के दिल्लगी म दुरपती ह खिसीयागे अउ रात के बेरा म लीला ल आधा छोड़के उठगे। अपन धुन म घर कोत रेगिस। घर के आगू म थोकुन कोलकी परथे। कोलकी ह कुलूप अंधियार रिथे। जइसे कोलकी मेर पहुंचथे दू झन मंदहा मन मंद के नसा म बपरी ल बिलई कस झपट देथे।
राधे के पिरीत म मगन दुरपती ह घर आवत रिहिस, का जानय बिचारी ह कलजुग के दुरयोधन मन मेड़री मारे बइठे हे तेला। गजब चिख पुकार मचइस फेर कोनो मदद बर नइ अइस। लीला के पोंगा के गोहार म दुरपती के पुकार दबगे। द्वापर के दुरपती ल तो भगवान किसन बचा ले रिहिस। कलजुग के नारी ल कोन बचावे। तलफत केवंची करेजा कांपगे। निरदई राकछत मन मुरछा देह ल छोड़के भागगे।
आधा रात के लीला सिरइस त पारा के मन लहुटिस। अंधयारी कोलकी म काहरत जीव देखके सबो के सांस अरहजगे। लकर-धकर तिर म जाके माचिस बार के देखिस, सबके नजर म दुरपती हमागे। बपरी के हालत ल देख के सबो अनहोनी ल भांप डरिस।
धरा पछरा कपड़ा लपेट के असपताल लेगिस। कोनो झन जाने किके घर के मन चोरी लुका इलाज पानी कराइस। मुंह लूकावत अपने छइहा ल डर्रावत दुरपती ह चार दिन म घर आइस। गांव भर म बात बगरगे रिहिस। दुरपती के घर वाला मन अतियाचारी के नाव ल बकरे ल किहिस। फेर डर के मारे नाव नइ बता सकत रिहिस।
लोक लाज के डर म दुरपती ह अपन जीव देबर एक दिन अपने देह म माटी तेल रुको डरिस। माचिस जियाते रिहिस ततके म ठुक ले राधे ह आगे। हाथ ले माचिस नंगा के फेकिस अउ दुरपती के हाथ थाम के किथे- ये विपदा के बेरा म घलो मेे तोर साथ हवं, निच के छुये म तोर मास बस्सा नइ गे। वो अंधयारी रात ल तै सपना समझ के भुला जा। तै जब किबे तब मे तोर संग बिहाव करे बर तियार हवं। फेर बदला म तोला ओकर नाव बताय ल परही। राधे ल संग म पाके दुरपती के बल बाड़गे। हिम्मत कर के मुंह खोलिस। ठेठवार के दूनो दरवाहा टूरा के नाव ल बकरिस। बउराय बरन पारा मोहल्ला के मन दूनो टूरा ल नंगत छरीस। गांव के सियान मन पंचइत म फैसला कराबो कइके छोड़ा दिस नइते जीये ले डरतिस।
पंचइत बइठिस त ठेठवार ह अपन टूरा के करनी के समाज म माफी मांगिस। ठेठवार मुड़ी नवाय किथे टूरा मन ह गुनाह करे हे तेकर सजा भोगे बर तियार हन जेन भी पंचइत के फैसला होही हमला मंजूर हे।
पंचइत ह अपन फैसला सुनइस के आज ले तुहर गांव निकाला हे। अपन घर दुवार ल छोड़ के तूमन ल जाय ल परही। अउ फेर लहूट के ये गांव म झन आहू। सरपंच अउ पंच के ये फैसला म सबे झन हामी भरिन। फेर दुरपती ल येहा मंजुर नइ रिहिस।
दुरपती किथे- ये मन ल गंाव निकाला झन देव। इहा ले निकल के अऊ कोनो गांव म जाके हांसी खुसी ले रही। अउ मउका पाके फेर कोनो म नियत गड़ाही। ये सजा ह येकर मन बर मुनासीब नइ हे।
गांव के मुखिया किथे- येमन ल का सजा दे जाय बेटी तही ह बता। तोर गुनेगार ल तही ह सजा दे।
दुरपती किथे- येमन ल गांवे म राहन दव। आज ले इकर पौनी पसारी बंद अउ गांव म रइ के भी गांव के समाज ले बाहिर रही। मेहा जेन अपमान के आगी म जरे हवं ओकर आंच इहू मन ल मिलना चाही। गांव म रही त रोज अपमान के अंगरा म जरही।
अउ एक ठन सजा मे सरी गांव ल देना चाहत हवं। जेन दारु के नसा म मोर गत बिगड़िस। आज ले वो दारु के दूकान ल बंद करा दव मोर अतकचे बिनती हे। दुरपती के ये बिचार ह सबो ल बने लागिस। नियाव के तुरते अमल होगे। ठेठवार के टूरा मन ल उकर करनी के सजा मिलगे। जेन दारु के सेती घर परिवार के गत बिगड़थे नोनी बाबू मन बिगड़थे वो दारु के दूकान बंद होगे।
दुरपती के नियाव म करइया कइवरया दूनो ल सजा मिलगे। राधे के चरन छू के दुरपती किथे मोला बल तोरे ले मिलिस। कहू तै मोला नइ अपनाए रितेस त आज मैं अपमान के अंगरा म जर के भुंजा जाए रितेव। तूमन तो मोर भगवान आव।
अतका ल सुन के राधे किथे अभी मे भगवान नइ हवं। लीला म बनथव। चल घर संझा होवथे लीला के तियारी करना हे। अभी तो लछमन ल सक्ती बान, मेंगनाथ वध, रावन दहन बांचे। रावन के मरे के बाद राम के राज तिलक होही अउ लीला सिराही। अतका म गांव के सियान मन घलो उकर पंदउली देथे अउ किथे तेकर पाछू राधे अउ दुरपती के बिहाव होही।
 ----------------------सिरागे --------------------------

लेखक - जयंत साहू 
पता- ग्राम डूण्डा, पोस्ट- सेजबहार
जिला/ तह. रायपुर छ.ग. 492015 
मो. 9826753304
jayantsahu9@gmail.com

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

my first STORY BOOK

my first STORY BOOK
>>Read online

Click this image in download PDF