गोबरहिन डोकरी

छत्तीसगढ़ी कहानियॉ भाग— गोबरहिन डोकरी


गोधुली बेला म गांव डहर लहुंटत बरदी। गांव भर के गरवा ल हांकत बरदिहा अउ बरदिहा के पाछू म गोबरहिन। येहा रोज के किस्सा आय। बिहनिया ले बरदिहा मन गांव के गरवा ल दइहान म सकेलथे अउ अलग-अलग टेन बना के चराय बर परिया कोती, बनडबरी कोती लेगथे। माई लोगिन मन गोबर बिने बर झऊंहा धर के निकलथे। गरवा के पाछू-पाछू उवत के बुड़त किंजरथे। जतके गरवा ततके गोबर्हिन।
एकक चोता बर चिथो-चिथो होवत रिथे। रोज असन आजो जवान मोटियारी मन तो झऊंहा-झऊंहा गोबर ल मुड़ी म बोहे लिचलिच-लिचलिच आवथे। उकरे पाछु म सुकवारो डोकरी ह सपटा भर खरसी-गोबर ल बोहे कोंघरे-कोंघरे आवथे। जीये बर खाय ल लागथे अउ खाय बर कमाय ल, बपरी डोकरी ह कमा-कमा के आधा उमर पोहा डरिस। ओकर आगू हंसइया न पाछु रोवइया। दाउ दरोगा घर लकड़ी छेना बेच-बेच के जिनगी के गाड़ी घिरलावथे।
आज डोकरी हा आधा झऊंहा गोबर ल पाइस ताहन लकर-धकर घर आगे। कभू काल तो पाथे। झऊंहा ल बाहिर म खपल के अछरा म पछीना ल पोछत भीतर म खुसरिस। एक कुरिया के घर वहू बिन कपाट सकरी के। खटिया उधे रिहीस तेला गिराके बइठीस। थकहा जांगर एक सांहस हकन के सुरताइस।
डोकरी के निंद उमचिस त मुंधियार होगे रिहीस। चिमनी बार के आगी सिपचइस अउ अपन पुरती भात ल रांध घला डरिस। एक परोसना खाके आधा ल बासी बोर के खटिया म ढलंगे। डोकरी सुते-सुते मने मन गुनथे-'कब तक अइसने जिनगी चलही? दिन दुकाल के बेरा म कहां के बनि-भुती मिलही। खेत-खार परिया परगे। बुड़हत काल म का खंती के ढेला उकलही भगवान, अब मोला ल अपने तिर तिरिया लेते ते महु सुभित्ता हो जातेवÓ।
सिरतोन बात ताय दिन दुकाल म सबेच ल तो काम बुता चाही। असाढ़ म एक पानी के गिरे ले सबो झन धान ल बो डरिस। फेर ठऊका आय असाढ़ म पानी निटोर दिस। बिगर पानी के धान-पान घलो, खेत खार म आंखी निटोर दिस। पानी बिन सबो के खेत सुखागे।
गांव के बड़े दाउ कुंवा बोर वाला ये, गांव भर म उहीच भर गाड़ा-गाड़ा धान ल लुइस। गांव के मन इही आसरा म रिहीस के दाउ घर बाड़ही मांग के चार महीना के भुखमरी ल काट लेबो। अउ फेर साल के धान होही तेमा बड़े दाउ के चुकारा कर देबो। धीरे-धीरे सबो किसान के कोठी अटागे।
सबो किसान एक दिन सुनता करके बड़े दाउ करा बाड़ही मांगे बर गीस। हाथ जोर के सबो झन बिनती करिस- 'मालिक हमर घर म एको बीजा चाउंर नइहे थोर बहुत साहमत करवं, हमरो फसल होही ताहन लहुटा देबो।Ó बड़े दाउ ह तो निचट जीछुट्टा निकलीस। गजब कलप डरिस। तभो ले दुच्छा के दुच्छा लहुटा दिस।
सबो गारी-बखाना देवत ओकर घर ले निकलगे। जाही तिहा जोर के लेगही रोगहा ह, अतेक धन दउलत ल अपन मुड़ेसा म जोरे बइठे हे। सियान मन तो कले चुप रइगे। जवान मन अतलंगहा होथे। जवानी जोसियागे। दाउ ह सोन के थारी म खाथे अउ गांव वाला मन के खाय बर दाना नसीब नइ होवथे।
चार झन टूरा मन दाउ ले तंगागे। मांगे म नइ मिले त नंगाय ल परही अइसे बिचार लगाके रातकुन कुलुप अंधियार म बड़े दाउ के बाड़ा म घुसरगे। दाउ के जोगासन म माड़े कुची ल धरिस अउ तिजउरी ल खोल के एक मोटरा सोने-सोन के मोहर ल गठियाइस अउ पल्ला निकलगे।
ओइलत खानी तो कोनो गम नइ पइस फेर भागे के बेरा पहरादार मन देख परिस। बाड़ा भर चोर.. चोर... चोर कहिके हो हल्ला होगे।
चोरहा मन भागत-भागत गोबरहिन डोकरी के घर म लुकागे। येती बर दाउ के लठैत मन गांव भर म बगरगे। घरो घर तलासी सुरु होगे। येती बर इकर मन के जी थरथरागे पकड़ा जबो त मोहर जही अउ हमर मन के जान घलो जाही। उकर खुसूर-फुसूर बड़बड़ई म सुकवारो डोकरी के निंद उमचगे। कोन-कोन हव रे कइके हुत पारथे। चारो झन टूरा मन डोकरी के पांव म गिरगे। सबो बात ल फोरिहा के बताइस। 
डोकरी ल चोरहा टूरा मन उपर दया आगे। डोकरी किथे- मैं ह तहू मन ल बचाहू अउ ये मोहर ल घलो फेर मोर एक ठन सरत हे। चोरहा मन पुछिस का सरत हे दाई। डोकरी किथे- पकड़ाहंू त मंै, अउ बांच जाहू त ये मोहर ल गांव भर म बाट देहूं। चारो झन डोकरी के सरत ल मान के मोहर ल डोकरी ल धरा के अपन-अपन घर कोती टरक दिस। मुंदराहा होइस ताहन डोकरी ह मोहर के गठरी ल परवा म टांग के झऊंहा धरिस अउ निकलगे अपन बुता म। 
पहरादार मन डोकरी ल सियनहिन ए कहिके कांहि नइ किहिस। डोकरी ह झऊंहा भर गोबर बिन के आगे। घर के परवा म खोचाय मोहर ल गोबर म गिलिया के सइत दिस। वोतके बेरा बड़े दाउ के लठियारा मन घलो घरो-घर तलासी लेवत डोकरी घर आगे।
सबो समान ल छिही-बिही करके खोजिन फेर नइ पाइस। लठियार मन के जाय के बाद डोकरी अपन बूता म लगगे। गिलीयाए गोबर ल धरके ओरी-ओरी बियारा के भाड़ी म छेना थोप डरिस। चोरहा टूरा मन सोचते रइगे। मोहर काहां कुलुप होगे। मोहर कहू जाय फेर उकर तो जीव बांचगे।
बड़े दाउ ह अपन पहरादार मन ल खिसयावत घर लहुंटगे। अउ फैसला करिस कि मोहर ह गांव म काकरो घर नइ मिलीस फेर मोहर गांव ले बाहिर गे नइहे। धरे होही त देख-देख के थोरे जिही। जिये बर चाउर दार बिसाय ल परही। कब तक बेचे बर नइ निकलही। गांव के बाहिर पाहरा लगा दव अवइया-जवइया सबके तलासी करे बर।
येती बर छेना सुखाइस ताहन गोबरहिन डोकरी ह अपन सरत के मुताबिक एकक ठन छेना गांव भर म बांट दिस। छेना देके बेरा डोकरी ह कान म फुसुर-फुसुर करे। बड़े दाउ ह डोकरी ल छेना बाटत देखिस फेर वो का जानय कि छेना के भितरी म मोहर दबे हे तेला। गांव के मन मोहर बेचे बर निसंसो बजार जाय। अउ ए बात के पहरादार मन ल घलो गम नइ होय। वो मन सोचे छेना बेचे बर बजार जाथे। गांव के मन बजार ले अपन-अपन खाये-पिये के समान ल बिसा के ले लाने।
अइसन सियानी मति ले गांव भर बर दार-चाउर के जुगाड़ होगे। चोरहा मन के संगे-संग गांव वाले मन घलो डोकरी के अक्कल ले अपन जीव बचा लिस। एक ठन बुराई ले गांव भर के भलई होगे। अब अवइया असाढ़ के आवत ले तो जिनगी चल जही। गोबर्हिन डोकरी जेकर माथा म दिन भर गोबर छबड़ाय राहय ओकर मति ल तो देख, दरिदरिन कस दिखे फेर गांव भर के दरिदरी ल दूरिहा दिस। गांव के मन डोकरी के जय जय गइस अउ दिन दुकाल ले निसफिकीर होगे।
      -------------------सिरागे -------------------
लेखक - जयंत साहू 
पता- ग्राम डूण्डा, पोस्ट- सेजबहार
जिला/ तह. रायपुर छ.ग. 492015  
मो. 9826753304
jayanysahu9@gmail.com

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