छत्तीसगढ़ी कहानियॉ भाग पांच- परसार के गउंदन
अकोली वाला मन के नांगर फंदावे त चइतराम ह आधा अक्कड़ ल जोत के ठाड़हे राहय। घर के खेती होवे चाहे पर के बनि चइतराम ह अइनेच कमाथे। तेकरे सेती तो जे नही ते वोला काम म बलाथे। अकोली गांव म चइतराम ह अपन दू झन भाई ल धर के आय रिहिस। वो समे ओकर गांव घर न खार म खेत। भइगे लोटा अउ थारी धरके आय रिहिस।
गांव के बड़का सियान मन घर बनि-भुती करके नानकुन कुरिया ल बना डारे हे। किथे न कमइया बर काम के कमी नइये तइसने चइतराम बर गांव म काम के दुकाल नइहे। चइतराम अपन दूनो भाई इसवर अउ सेवक संग जूर मिलके बनि-भुति करके पेट रोजी चलावथे। तीनों भाई म इसवर ह दू कलास पढ़े रिहिस ते पाय के कमई के हिसाब-किताब उही ह राखे। इकर कमई ल देख के कोनो ह बइमानी घलो नइ करत रिहिस। जतका दिन कमाय राहय तेकर ले दू आना उपराहाच देवे।
बनि के थोर-थोर पइसा सकेल-सकेल के परिया भुइया ल बिसावत गीन। गांव के सियान मन किथे चइतराम अब तो तुहर गांव म घर होगे अउ खार म खेत घला होगे त तीनों झन बर बिहा कर डरतेव। चइतराम किथे बात तो रिसतोन किथव ददा फेर तूहर साहमत के बिना मे काय कर सकथव। मोर तो दाई-ददा कोनो नइहे जेन मन हमर बर बिहा के सरेखा करतिन। अतका ल सून के गांव के दाउ दरागा मन अगवा बन के तीनों भाई के बर बिहाव कर दिन। बने मनखे के सबे ह बने होथे।
कमई के परसादे घर के परिस्थिती सुधरे लगिस। तीनों भाई ह पर के बनि ले छुट के अपन बिसाय परिया ल सोझियावय। रोज थोक-थोक कमा-कमा के बन बुटा ले छबाय परिया ल धनहा खेत बना डरिस। मेहनत के बिरवा ह दुच्छा नइ जाय फर धरबे करथे। चइतराम इसवर अउ सेवक के मेहनत घला फर धरिस। धीरे-धीरे तीनों भाई तीस अक्कड़ के जोतनदार होगे। घर परिवार ह मेहनत के भरोसा सुधरगे।
अब तो पर घर बनि करे ल घलो नइ जाय। घरे ले बेरा नइ उसरे त काहा बनि म जाही। सबो के लोग लइका बाड़गे। नानकुन कुरिया ले अब बड़का घर बियारा अउ परासर होगे। गांव म अब कोनो ओला बिचारा गरीब नइ काहय। अब ओकर घर अइसन समे हे कि उही ह चार झन बनिहार ल चला लिही। फेर इकर मन म धन के थोरको गरब गुमान नइहे। आजो वोइसने जिनगी जियथे जइसन गरीब रिहिसे त जियत रिहिस।
कनकी के पेज म अम्मारी के साग जेला तीन बेर पुरो के तीनों भाई खाय। आज वइसन दिन तो नइहे फेर आदत ह नइ छूटे हे। खाय के बेरा, कमाय के बेरा संघरे सकलाके गोठ बात करत खाय। अकोली गांव म चइतराम इसवर अउ सेवक के गजब नाम होगे। अब तो तीनों झन अपन लइका मन ल घलो खेत लेगय। चइतराम किथे बनिहार के लइका खेती के बुता नइ सिखही त काय काम के। नांगर के पाछु-पाछु लइका मन ल रेंगावत किस्सा कहानी सुनावत राहय।
थोरके म लइका मन घलो नांगर के पाड़की ल थामहे लगगे। देखइया मन किथे देख लइका मन घला दाई-ददा कस कमइया निकलही। किथे न जइसन-जइसन घर दुवार तइसन-तइसन फइरका अउ जइसन-जइसन दाई-ददा तइसन-तइसन लइका। रमगे टूरा मन घला खेती म। ददा के संगे संग मूड़ भर के बइला ल बिता भर के टूरा ह नाथ डरिस। जमहेड़ के गाड़ा म फांदीस अउ हकन के तुतारी मारिस। होर .... होर .... काहते हे बइला ह गाड़ा सुद्धा घुरवा म उतरगे।
नेवरिया गड़हा कतेक कासड़ा ल तिरतीस। थामहे नइ सकिस। चइतराम ह धकर लकर बइला ल ढिलिस अउ दू चार झन बला के गाड़ी ल घुरवा ले बाहिर निकालिस। टूरा मन डर्रावत रिहिस ददा ह खिसीयाही किके। फेर चइतराम ह गुसियाय ल छोड़ मने मन मगन होगे। किथे किसान घर के लइका गाड़ा ल बइला संग नइ खेलही त का फुग्गा घुनघुना ल खेलही। ओ दिन ले लइका मन के बल अउ बाड़गे।
एक दिन इसवर ह गांव के सब लइका मन ल इसकूल जात देखिस। ओकरो मन होइस कि मोरो घर के लइका मन पढ़तिस-लिखतिस। घर जाके लइका मन ल किथे काली ले तहू मन इसकूल जाहा रे। अतका ल सुनके टूरा मन अपन-अपन ले नइ जान नइ जान किके टरक दिस। इसवर ह दू कलास पढ़े रिहिस ते पाय के अपन टूरा ल पढ़ाय के साध मरिस। फेर ओकर टूरा पुनीत के थोरको पढ़े के मन नइ रिहिस। तभो ले बरपेली इसकूल म नाम लिखा दिस। नइ जाव काहे तेला मारपीट के पठोवे। चइतराम अउ सेवक ह अपन टूरा मन ल जादा नइ बरजिस। काबर कि जोर जबरदस्ती ले लइका ह बिगड़ जथे। इसवर ल घला कि बरजिस लइका उपर जोझा झन पार किके।
इसवर नइ मानिस अउ अपन टूरा पुनित ल परसदा के इसकूल म भरती करा दिस। ओ समे अकोली ह नानकुन बस्ती रिहिस ते पाय के गांव म इसकूल नइ रिहिस। गांव के सब लइका मन पढ़े बर परसदा जाय। सड़क नइ रिहिस पैडगरी रद्दा म रेंगत जाय ल परे। सुक्खा दिन म तो बन जए फेर पानी बादर के दिन म माड़ी भर चिखला ल नाहकत जाए ल परे। इसवर ल पढ़ई ले गजब लगाव रिहिस इही पाए के अपन सपना ल अपन टूरा पुनित म देखे।
पुनित ह पढ़-लिख के हूसियार हो जही त हमर चीज बस के हिसाब-किताब राखही। हमू मन ल थोर बहुत अकछर के गियान कराही किके आस राखे रिहिस। पुनित ह बिहनिया ले नहा-खोर के खा डरय। पढ़े बर जाही किके कोनो वोला काम घला नइ तियारत रिहिस। कमइया मन ले आगु वोला खाय बर देवय। पाछू बाकी कमइया मन खाके खेत जावे। पुनित ह झोला म एक ठन रोटी लूका के धरे राहय। एक ठन अंगाकर वोकर दाई ह अउ धरा दिस। अइसने रोज पुनित ह खात पियत बेरा म आवे बेरा म जावे। इसवर ल गजब गुमान होगे अपन बेटा उपर काबर कि अब चेत लगा के इसकूल जाय बर धर लेहे। चइतराम अउ सेवक ल घला भरोसा होगे। पढ़-लिख के बने चीज बस के सरेखा कर लिही किके।
पुनित ह सबो के पंदउली पाके अऊ छानी म चड़गे। घर ले तो रोज निकले इसकूल बर फेर कोनो दिन जाय कोन दिन नइ जाए। नइ जाय तेन दिन परसार म बइठ के अंगाकर रोटी ल खा लय अउ छुट्टी के बेरा घर आ जए। इसवर ल थोरको गम नइ रिहिस। लेदे के टूरा ह आठवीं पास होगे। चइतराम ल पुनित उपर भरोसा अऊ बाड़गे। उही भरोसा म पुनित ल तारा कुची धरा दिस। हूसियार के लइका डेढ़ हूसियार होगे। इसकूल जावथवं कइके निकलथे अउ परसार म जाके जुवां-चित्ती म रम जथे।
पुनित के हाथ म तो तिजउरी के चाबी राहय। जतका पइसा चाहे ततका निकाले अउ जुवां म उड़ा दय। चार आना आठ आना के दाव ह आठ रुपिया दस रुपिया के होगे। अब तो पुनित के इसकूल जवइ बिलकुल बंद होगे अउ ओकर संगे-संग तीन झन अउ टूरा मन के घलो बंद होगे। परसदा के मास्टर ह एक दिन इकर मन के सिकायत करे बर अकोली अइस। गुरुजी किथे तूमन अपन लइका मन इसकूल काबर नइ भेजव। चार महीना ले गैर हाजिर हे। अतका ल सून के गांव के सियान मन किथे टूरा मन तो रोजे इसकूल जाथन किके घर ले निकथे फेर कोन जनी काहा जाके बिलमथे। गुरुजी किथे नहीं भई इसकूल आबे नइ करे। आधा बीच ले बइठ के घर आ जात होही।
इसकूल के बहाना टूरा मन काहा जाथे किके एक दिन सियान मन पासथे। टूरा मन इसकूल जाय बर घर ले निकलथे। पाछु-पाछु यहू मन निकलथे। पुनित अउ ओकर संगवारी मन परसदा के इसकूल जाय ल छोड़के गांव के पिछोत के परसार म खुसर जथे। उहा लुका के कोनो माखुर गठत कोनो बिड़ी सुलगावत अपन अपन बसतर ल फेक दिस। एक झन टूरा ह अपन थइली ले तास पत्ता निकालिस अउ चारो झन बर बांटिस। जइसे दांव लगाय बर पइसा निकालिस ठुक ले चइतराम मन पहुंचगे। किथे कस रे इही तूहर इसकूल ए अउ ए काय पढ़थव। सियान मन ल देख के सबे झन सुकुड़दुम होगे।
अपन-अपन टूरा मन ला नंगत ठठावत घर डहर लानिस। पुनित ल घलो चइतराम ह चार चटकन हनिस अउ तिरत घर कोति लेगिस। घर म आगे चइतराम किथे ये टूरा के करनी ले मोर तन बदन म आगी बरगे। पछीना ओगार के कमाय धन ल लूटाही त दुख ता लगबे करही। चइतराम किथे सबके तो पछीना के कमई आए फेर मोर खून के कमाइ ये। येला ते हा परसार म जुवां खेल के लूटावथस।
तोर नामे भर पुनित ए करम ले तो ते कुल के कलंख अस। पुनित तैतो परसार के गउंदन अस। घर म राखबे त घर बस्साही दुवार म राखबे त दुवार। जानवर घला तोला नइ सुंखे तइसन घर भर म तोर नियत बस्सागे। अपन टूरा के अतेक गारी बखाना ल इसवर ह सहे नइ सकिस। पुनित डहर बोले ल धर लिस। इसवर किथे- भइया तोरे भर कमई नोहे मोरो कमई के आए। तै लहू गंवाय हस त महू तो गवाय हवं। मोर लइका तोर बर कलंख होगे। इही तोर अउ मोर के तनीतना म झगरा बाड़गे। झगरा ह बाटा हिसा म आगे। तीनों भाई अपन-अपन चूलहा अलगा डरिस। बाटा हिस्सा के बाद तको पुनित के बेवहार ह नइ बदलिस। अपन बाप के मेहनत के कमई ल जुवां म उड़ाय ल नइ छोड़िस। बाप ये तभो ले के दिन ले सइही आजे सुधरही काले सुधरही कइके मन ल मड़ावथे। पुनित ह दिनो-दिन अउ बिगड़त जात हे। जुवां ले गांजा दारु म उतरगे। घर म रोज रुपिया बर झगरा करे। नइ देवय त मार पीट के नंगा लेवे। इसवर ह अब अपने लइका के दुख रोवे। भाई मन का कितीस वोमन तो परोसी होगे रिहिस। कलेचुप बाप बेटा के झगरा ल देखे।
हरेली तिहार के दिन चइतराम अउ सेवक अपन-अपन नांगर बक्खर के पूजा करे बर धोवत-मांजत रिहिस। इसवर घला तरिया म लेग के नांगर ल धोइस। गांव बर हरेली तिहार बड़ खुसयाली के परब आय। अपन-अपन खेती के औजार ल सुमरे के दिन आय। एकरे परसादे तो खेती किसानी के बुता सिरजथे। सबो औजार ल अंगना म मड़ाके पिसान के हाथा देवथे। बंदन के टिका लगावथे। माई-पिला जुरियाके आरती उतारथे। तीनो भाई ह अपन आगू के दिन ल सोरियवथे। सुनता अउ परेम के दिन ह सुरता आवथे। लइका के झगरा के सेती का ले का होगे। इसवर ह पुनित के दुख म बने ढंग ले तिहार नइ मनावथे।
पूजा करे के बाद पुनित ह मनमाड़े पीये हे अऊ पीये बर पइसा मांगे ल आगे। इसवर पइसा नइ दिस त अंगना म माड़़े नांगर बक्खर अउ रापा कुदारी मन ल देख डरिस। पुनित ल कुदारी ल उठा के किथे आज इही ल बेच के दारु पीहू। हरेली तिहार के कुदारी ल बेचे बर धर लिस ये हा इसवर ल साहन नइ होइस। कुदारी ल छोड़ावत किथे मेहा इही रापा कुदारी म रात दिन मेहनत करके घर दुवार खेती खर बनायेवं अउ तै ह येला बेचे बर लेगाथावस। पुनित एक नइ सुनिस हाथ ल झटकार के घर ले निकलगे।
कुल के कलंख के पाप ह हद ले बाहिर होगे। इसवर ह मार आंखी ललियाए पुनित के पाछु-पाछु परसार कोति दउड़िस दिस। कुदारी धरे पुनित अउ इसवर के बज्र झगरा होगे। मारिक मारा, पटकिक पटका। तिहार के दिन सुनसान बियारा कोनो छोड़इया नइ रिहिस। पुनित अउ इसवर दूनो झन जोर दार किकियइस। ताहन भइगे अनहोनी ह होगे। इसवर ह अपन टूरा ल उही परसार के गउदन म मुसेट परिस। आज अइसन दिन आगे इसवर करा कि गांव भर के गउंदन पुनित के नाव मेट परिस।
इसवर अपन करम म कठल के रोइस। राम लखन बरोबर अपन भाई मन करा जाके छिमा मांगिस। किहिस मोरे सेती हमर चुलहा अलहाय रिहिस। घर के बाटा होय रिहिस। इसवर किथे भइया मोर लइका ह तो उही दिन मोर हाथ ले निकलगे रिहिस अउ आज मोरे हाथ ले ये दुनिया ले निकलगे। चइतराम किथे यें का किथस इसवर। हा भइया आज पुनित मोर हाथ ले ये दुनिया ले निकलगे। अतका ल सुन के चइतराम अउ सेवक ह तीनो भाई दुख के बेरा म फेर जुरियगे। अपन मन के रिस भुलागे। चइतराम किथे ते ये काय कर डरेस भाई। अपने लहू ल बोहा के आगेस।
चइतराम अउ सेवक धकर-लकर परसार म गिस उहां पुनित लहू-लहू म नहाय परे राहय, नारी ल टमड़के देखिस त संसा चलत रिहिस। तीनों भाई के सुनता अउ जिकर करे ले पुनित के जीव बांचगे। अब पुनित के नवा जनम ह घर ल मिंझारे के ओखी होइस। तीनों भाई पुनित के बने रकम ले इलाज पानी करवईस। चार महीना के गे ले पुनित म टाहल-टुहूल करे के लइक होगे। गरहन के अंधियारी के बाद फेर पुन्नी के अंजोर सहि पुनित बने रद्दा म आगे। फेर कारी रात बरोबर हरेली के दिन अउ परसार के गउंदन ल अकोली गांव अउ चइतराम, सेवक, इसवर ल जीवन भर सुरता रही।
----------------------सिरागे --------------------------
लेखक - जयंत साहू
पता- ग्राम डूण्डा, पोस्ट- सेजबहार
जिला/ तह. रायपुर छ.ग. 492015
मो. 9826753304
jayantsahu9@gmail.com
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें