छत्तीसगढ़ी कहानियॉ भाग चार - लाली चूरी
तुलसी ह अंगना के धुर्रा ल रपोट-रपोट के परदा रुंधे। पारा भर के लोग लइका सेकला के घरघुधिंया खेले। एक झन नोनी के दाई बने एक झन बाबू के दाई। सुघ्घर पुतरी-पुतरा के बिहाव ल रचै। लइकुसहा उमर के लइकुसहा नेंग जोग। उही बरतिया उही घरतिया, उही लोकड़हिन उही बजनिया। नान-नान पोरा चुकिया म साग-भात चुरय। कमचील के मड़वा म तेल हरदी चड़य अउ भांवर परय। टूरा मन कनिहा म नंगारा बांधे। रोंगोबती अउ पानवाला बाबू गाना गा गा के गुदंग-गुदंग नाचे। ये ठ_ा दिल्लगी के बिहाव ल देख के तुलसी के दाई हा चावंरा म बइठे-बइठे मुचुर- मुचुर हांसे।
तुलसी के दाई ह ओतके बेरा बाहिर कोति काकरो हुत पारे के आरो पाइस। तुलसी ल किथे- जा बेटी कपाट ल खोल दे, कोन चिल्लावथे। ठुकूर-ठुकूर बाहिर कोती ले ओरो मिलत हे।
तुलसी ह काहा सुनय वोतो लइका के टिकावन म मगन हे।
अपने ह कपाट ल खोलिस। दुवारी म पटइल अउ दू झन अनगइहा सगा ठाढ़हे राहय। पटइल कका अउ सगा ल भितरी म बलाइस।
तुलसी के दाई पुछिस-कइसे आय हव कका?
पटइल किथे- आए बर तो रेंगत आए हन अउ कारन ल पुछबे त मे हा तोर नोनी बर सगा लाने हवं। सगा के नाव सुन के तुलसी के दाई हा लकर-धकर मुड़ी ल ढांकिस। लोटा म पानी दिस अउ पालगी करके खटिया म बइठारिस। तुरते आगी सुनगा के चाहा डपका डरिस। तुलसी के दाई तुलसी ल किथे- जा तो नोनी तोर ददा ल बला के आबे। घर म सगा आहे कीबे ताहन जल्दी आही। तुलसी ह नइ जाव, नइ जाव काहत रिहिस तेला जोजिया के भेजिस। अगुन-छगुन करत तुलसी ह खेत गिस अउ अपन ददा ल किथे- ददा हमर घर सगा आहे, दाई तोला बलावथे। वोकर ददा ह दिल्लगी करत किथे- तोर दाई के पेट म तो काहि नइ रिहिस कंाहा के अउ नवा सगा आ जही। तुलसी किथे- ओइसना सगा नहीं ददा पटइल बबा हे न तेकरे संग दू झन सगा आहे। दाई काहत रिहिस हे मोला देखे बर आहे किके। वोतका बात सुन के वोकर ददा के मुह म लाड़ू हमागे खुसी के मारे काम बुता छोड़ के घर आगे।
पटइल कका ह सगा संग भेट करईस। घर दुवार ल देख के सगा कर तुलसी ल हारिस। पुरोहित करा लगन-पतरी धरा के बिहाव के मड़वा ल गाड़िस। अनबुद्धि लइका का जानय, जेन अंगना म पुतरी बिहाव के खेल खेलय उहा सिरतोन के मड़वा गड़े हे। दाई के कोरा म बइठे चार बछर के तुलसी ल बिन मुंह के गरवा बरोबर, ददा ह पांच साल के दूलहा के टोटा म आरो दिस। तुलसी के दाई ददा दूनों कनियादान के धरम करके पुन कमा डरिस। लइका मन नान-नान रिहिस ते पाय के गवन नइ कराइस।
तुलसी बर तो ओकर बिहाव ह घला खेलवना रिहिस। अपन उही अंगना के घरघुंधिया म बाहा भर चुरी पहिरे सोहागिन के सिंगार सजाए रिहिस। दू चार दिन म बिहतरा लाड़ू सिरागे, सगा सोधर अधियागे। बर-बिहाव बने रकम ले निपटगे।
फेर तुलसी के अंगना कभु सुन्ना रइबे नइ करय। रोज स्कूल ले आवे ताहन सबो सहेली सकलाके फुगड़ी, गोटा, बिल्लस म रमे राहय। धीरे-धीरे तुलसी ह सगियान होत गिस, खेलई-कुदई छुटत गीस अउ पढ़ई-लिखई म मन रमत गीस। तुलसी ह चंचल अऊ पढ़ई म गजब हूसियार रिहिस।
पांचवी म अउवल आईस तभो ओकर ददा ह छटवीं म भरती नइ करइस। नोनी जात मन कतेक पढ़ही-लिखही किके ओकर दाई घला किहिस। अब तो तुलसी के पढ़ई छुटगे। चलचला बरन तुलसी ह थोर बहुत अपन दाई संग काम बुता करन लागे।
बारा बछर के तुलसी ह दाई-ददा ल बोझा लगे लागिस। सोचे लागिस सगा घर जाके गवन पठौनी मड़ा देतेन ते हमरो मुड़ ले बोझा उतर जतिस। तुलसी के ददा ह सगा घर जाए के सोचते रिहिस वोतके बेरा ठुक ले समधी गांव के संदेसिया आगे। संदेसिया किथे- तुहर सगा उपर बिपदा आए हे तुमन ल खत्ता म बलाए हे। तुलसी के ददा ह संदेसिया सो पुछिस का होगे, का बाते तेमा अतेक बिहनिया ले समधी के बलावा आगे। संदेसिया ह अपन तिर बला के सबे बात ल बताईस। तुलसी के ददा ह सुन के दंग री गे।
समधी के संदेस ल पाके तुरते संदेसिया संग रवाना होगे। माटी पानी के किरिया करम ल निपटा के संझाकुन धर लहुटिस। रोनमुहा थोथना ल देख के तुलसी के दाई पुछिस- का होग हो, कोनो अलहन आगे तइसे लागथे।
तुलसी के ददा किथे- हमर दमांद अब नइ रिहिस, बेटी के घर बसे के पहिली उजरगे। दाई-ददा दूनों अपन बेटी के बिगड़े भाग ल देख के मुड़ी धरे रोवथे। तुलसी ह घर अइस त ओकर दाई हाथ ल धर के ओकर हांथ के लाली चूरी ल चरचिर ले कूचर दिस।
दाई ह दमांद बर रोवथे, ददा ह बेटी के भाग म अउ तुलसी ह अपन हाथ के चूरी बर रोवथे।
तुलसी ल समझावत महतारी ह आज वोकर बिहाव के बात ल बतावत किथे- हमन तोर नानपन म बिहाव कर दे रेहेन, मोर नानपन के सोहागिन बेटी आज तोर सुहाग उजरगे तै राड़ी होगेस। ददा ह धिरज धरोवत काहय- आज ले तै दूसर लइका मन कस चूरी-चाकी टिकली माहुर झन लगाबे। सोलह सिंगार के सातो रंग तोर बर सादा कारी होगे।
तुलसी किथे जेन बिहाव ल जानव नहीं तेला मंै मानव नही। बिहाव के सुख ल देखे नइहवं अउ राड़ी के पिरा धरावत हव। तुलसी ह नइ मानिस। अपन जिद म अड़े दू दिन चूरी-चाकी पहिर के गांव म किंजर दिस गांव भर हो हल्ला होगे। राड़ी टूरी ह मटमट ले संभर के किंजरथे अउ दाई-ददा के नाक कटावथे। फलानी के टूरी ह चूरी नइ उतारे हे कइके गांव म बइठका सकलागे।
तुलसी ल तो काकरो डर नइहे फेर दाई-ददा ल समाज के डर हे। गांव के बइठका म तुलसी के ददा के मुड़ी ह नवे हे फेर तुलसी ल अपन उपर गरब हे। गांव के मन तुलसी के बाप ल खड़ा करा के पुछथे कइसे गा तोर नोनी ह राड़ी होगे हाबे तभो ले ओकर हांथ के चूरी-चाकी ल नइ उतारे हस। तोर नोनी ह कुवारी नोनी मन बरोबर चूरी-चाकी टिकली फुंदरी लगाय गांव-गली म किंजर-फिरत रिथे। तोर नोनी के देखा सिखी अइसन-अइसने हमर गांव के नित-नियाव बिगड़ही। तुलसी के ददा ह चिट पोट नइ करिस। गांव वाले मन अपन-अपन ले तुलसी के ददा उपर गुसियाए परे। तब तुलसी ह बइठका म खड़ा होइस। बेटी ह बाप के मजबूरी ल समझिस अउ चार गंगा ले जवाब ल मांगिस- काहा गे रिहिस तूहर समाज ह जब मोर नानपन म बिहाव होइस? ओ दिन काबर ये बताए बर नइ आयेव कि नानपन म बिहाव झन कर। आज राड़ी होगेव त मोर चूरी उतारे बर चार समाज जुरियागेव।
अतका ल सुन के सबो सियान के मुंह खिलागे। एकक करके सबो सियान मन तुलसी के गोठ ल सुन के किहिस के बेटी तुलसी बने बात ल काहत हे। गलती हमी मन करथन भोगथे नोनी-बाबू मन। गांव के दूसर नोनी मन तको तुलसी के बात के साहमत करिन। सबो सियान के मुड़ी नवगे तब तुलसी किहिस कहू तुहर म थोरको सरम बांचे हे त इही चार गंगा म किरीय खाव कि अब ले काकरो नानपन म बिहाव नइ करन अउ न करन देवन। अपन-अपन बेटी मन ल घलो बेटा बरोबर पढ़ा-लिखा के साक्षर बनाहू। कहु तुमन अइसन किरिया खाए बर तियार हव त महू अपन हाथ के चूरी ल कूचरे बर तियार हवं। दाई-ददा ल अपन करनी के पहिलीच ले पछतावा रिहिस। अब गांव वाला मन के घलो आंखी उघरगे। सबो झन मिल के लोटा म गंगा जल धरके किरिया खाइन।
तुलसी हा घलो खुसी के आसू छलकात अपन हाथ के चूरी कूचरे बर दूनो हाथ ल उठाइस। ओतके बेरा गांव के सियान मन चिल्ला उठिस- ठैर जा बेटी, तै अपन हाथ के लाली चूरी ल झन कूचर। होनी ल तो कोनो नइ टारे सके। जवइहा तो चल दिस, तोर जिनगी रोवत काबर कटय नोनी। गांव भर के तै सियानीन बेटी अस। जा पढ़-लिख के अपन जिनगी बना हम सब तोर संग हन।
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लेखक - जयंत साहू
पता- ग्राम डूण्डा, पोस्ट- सेजबहार
जिला/ तह. रायपुर छ.ग. 492015
मो. 9826753304
jayantsahu9@gmail.com
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