छत्तीसगढ़ी कहानियॉ भाग तीन- चुगलाहा
गांव ल तो सुनता अउ सद्भावना के ठउर केहे जाथे। नित-नियाव के आसन म बइठे गांव के सियान ह गांव भर ल सुमता के डोरी म बांधे रिथे। परेम के तुतारी ले गांव भर ल हॉकथे। कोनो ल दुख पिरा झन होवे किके गांवे म अपन मति अनुसार नियम बनाय रिथे। का अमीर का गरीब छोटे बड़े सबो ल सियान बबा ह एके लउठी म हॉके। अपन बखत म मानपुर गांव घलो सुनता अउ एकजुटता के मिसाल रिहिस, फेर का करबे सबो दिन एक बरोबर नइ राहय अब सियान ह सियाने होगे। नित-नियाव ह अब थाना कछेरी के होगे हे। गांव तिर म थाना का आगे थानादार बात-बात म गांव आ धमकथे।
दाउ ह अपन पाहरो म कभू थाना-कछेरी नइ गे रिहिस फेर का करबे जब ले नियतखोर कोतवाल अउ घूसखोर थानादार के जोड़ी भराय हे तब ले दाउ अउ गांव वाला मन ल लिखरी-लिखरी बात बर हवलदार करा खड़ा होय बर परथे।
ओ दिन एक घर सास बहू के झगरा होइस परोसी ल आरो नइ लगिस। फेर चुगलाहा कोतवाल के कान म खजरी उमड़िस ते पाय के गांव भर के मन गम पागे। कोतवाल के करनी अतकेच भर नोहे। बाप बेटा के झगरा, कोनो के भइसी गवागे, कुकरी चोरी होगे, कोनो ल कुकुुुर चाब दिस अइसन-अइसन नान-नान बात म कोतवाल ह थाना वाला ल बलाके गांव के लोगन मन ल हलाकान करय। इही थाना कछेरी के सेती गांव के पंचइत अउ नित नियाव छिदीर-बिदीर होगे। हरेक बात म थाना आगे।
मातर के दिन के बात आए मदन अउ दया ह झगरा होइस। नसा के रोस म दूनों झन मारिक-मारा होइस। कोनो नइ छोड़ातिस त तो मुड़ी कान के फुटत ले हो जतिस। सियान मन छोड़ाइस अउ घर म ओइलइस। बिहनिया नसा उतरे के बाद मदन अउ दया दूनों झन अपन-अपन कोती ले पंचइत सकेलिस। दाउ ल फैसला करे बर बलाइस। पंचइत सकलाय देख के कोतवाल के आंखी फुटगे। जाके तुरते थाना म गांव के पंचइत के बात ल एक ले दू करके बता दिस।
थानादार ह गांव अइस अउ खून के मामला आए किके दूनों ल अंदर कर दिस। सिपाही संग भला कोन लड़तिस दाउ घलो चुप रइगे। मदन अउ दया के थाना म जाए के पाछु दूनों के घर वाला मन मिंझर के दाउ करा अपन-अपन घर वाला ल छोड़ाय के बिनती करिस। दाउ ह थाना म पइसा कउड़ी भर के दूनो झन ल छोड़ा के लानिस। एक घाव जिहां घूसखोरी के आदत परगे ते कहां छुटना हे। कोतवाल ह तो गांव म सिपाही मन के चुगलही करे बर बइठे रिहिस। उही ह खबर करे अउ दूनों कोत के पइसा झोरे।
गांव म कोतवाल के जिये खाए के पुरती कोतवाली जमीन हे तभो ले चोट्टही करके खाय बिगर ओकर पेट नइ भरे। थाना के डर म कोनो ओला कांही काहत घलो नइ रिहिस। ओकरो पारी आही त मजा बताबो किके मने मन म सबो बैर धरे राहय। दाउ घला कोतवाल के पारी के अगोरा करत रिहिस।
एक दिन बिहनिया के बेरा रिहिस गांव भर के मन अपन-अपन काम म जाए के तियारी करत रिहिस। कोनो ल कोनो से गोठियाए के फुरसद नइ रिहिस। सबो झन बुता म मगन रिहिस ओतकेच बेर कोतवाल ह रेरी पारत घर ले निकलिस। चोर... चोर... चोर...। मोर घर म चोर खुसरे हे बचावा दाई-ददा हो। मोला बचावा। चोर... चोर...।
चोरहा मन मुंह म साफी बांधे कोतवाल ल मारत-पिटत ओकर घर के संदूक पेटी ल खोले लगिस। कोतवाल ह अपन घर के रूपिया पइसा ल चोरी होत देख चोर-चोर किके चिल्लावे। गांव वाला मन कोनो ओकर मदद बर आगू नइ अइस। चोरहा मन कोतवाल के घर म दंगा दासी करिस अउ चोरी करके चल दिस। कोतवाल रो-रो के गांव के मन ल करलई अकन बताय लगिस।
कोतवाल ह सबो किस्सा ल बतावथे अउ गांव वाला मन किस्सा सुने बरोबर हुकारू देवत हव-हव किके सुनथे। कोतवाल घर ओतेक अकन के चोरी होय हे तभो ले कोनो ह मया के दू भाखा नइ बोलत हे। बने बेवहार के रितिस त तिर-तखार के मन ओधतिस नियतखोर कोतवाल के चरितर के सेती दुख म घलो अपने अकेल्ला हे। उहू ह तो काकरो सुख-दुख म साथ नइ दिस त ओकरे दुख म कोन साथ दिही। कोतवाल ह पर के झमेला म जोझा परके धन कमाय रिहिस। उपराहा म चोरी लुका ले अपन कोतवाली जमीन ल घलो बेचे रिहिस। घर म बने रूपिया के सकलाती होइस अउ बिलई कस झपटती होगे। पर के ल झपटे परय तेकर सेती ओकरो झटइस।
रोवत-गावत कोतवाल थाना पहुंचिस अउ चोरी के बात ल थानादार ल बतइस। थानादार तमतमावत गांव अइस। गांव म एको मनखे नहीं। सबो अपन-अपन काम बुता म चल दे रिहिन। गांव म जइसे कुछू होयच नइये तइसे बरोबर रिहिस। देख के थानादार ल अचंभा लागिस। कोतवाल ल किथे- कइसे कोतवाल तोर घर सिरतो म चोरी होय हे। कोतवाल किथे हहो मालिक गांव भर के आगू म चोरी होय हे। गांव भर के आगू म चोरी होय हे फेर गांव म तो एको मनखे नइ दिखे। थानादार गांव के एक झन सियान ल पुछिस कइसे गा कोतवाल घर चोरी होवत रिहिस त रेहेस का। सियान किथे- कतका बेर चोरी हो गे साहेब हम तो जानबे नइ करन, ये दे तूहरे मुंह अभी सुने हन। लइका मन खेलत रिहिस तेमन ल पुछिस- तुमन देखे हव का। लइका मन किथे- चोरह घर का चोरी होही गा, लबारी मारथे। थानादार अउ कोतवाल गांव वाला मन ल पुछ-पुछ के हलाकन होगे कोतवाल घर के चोरी ल कहू जानबे नइ करे। कोतवाल के समान चोरी होगे उपर ले कोना ह बताय बर तियार नइये।
थानादार बिगर सबूत के पतियाबे नइ करिस कि ओकर घर चोरी हो हे। थानादार कोतवाल ल किहिस दू चार सौ देबे त तोर केस बनाहू। चोरहा मोर हांथ आ जही त तोर रूपिया मिल जही, नहीं ते उहू ल गवांए जान। आखिर म थानादार ह कोतवाले ल समय खराब करथस किके खिसयइस अउ उही पावं लहुटगे।
अतका बिते के बाद कोतवाल ल समझ आगे रिहिस की गांव म रइ के गांव वाला संग दोगलई करेवं तेकर फल आए किके। अपन करनी म छिमा मागे बर पंचइत सकेलिस। मानपुर म एक बेर फेर नियाव के आसन म दाउ बइठिस। सरी गांव वाला के आगु कोतवाल किहिस कि मंै लालच म पर के नाननान बात के लिगरी लगा के सबला थाना कछेरी म रगेढ़त रेहेव। अब मोला क्षमा करदवं। अइसन गलती दूबारा नइ करवं। मोर करनी के सजा तो मोला मिलगे मैं कंगला होगेव। दाउ ह कोतवाल ल अपन करनी म पछतावत देखके किहिस हमर पंचइत म काकरो संग अनियाय नइ होय।
दाउ ह मदन ल आरो करिस। मदन अउ दया ह एक ठन मोटरी लान के मढ़इस। दाउ किथे कोतवाल ले धर तोर रूपिया पइसा ल, तै सरी गांव ले बैर करेस अपन लालच बर फेर गांव के मन तोर ले नहीं तोर लालच ले बैर राखे रिहिस। गांव के सुनता टोरे बर तै का-का नइ करे होबे। अब देखे डरेस न गांव के नियाव अउ गांव के सुनता।
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लेखक - जयंत साहू
पता- ग्राम डूण्डा, पोस्ट- सेजबहार
जिला/ तह. रायपुर छ.ग. 492015
मो. 9826753304
jayantsahu9@gmail.com
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