दनगरा

छत्तीसगढ़ी कहानियॉ भाग छै - दनगरा


बोरिया बांधा के उलट म बसे हे मनियारी गांव ह। इहा के लोगन मन दिन भर खेती किसानी म रमे रिथे। गांव के चारो मुड़ा उपजाऊ माटी हे ते पाय के सबो करा खेती-खार सपुरन रिहिस। किसानी के छोड़ कोनो दूसर बुता म कोनो नइ जात रिहिस। बोरिया बांधा के सेती मनियारी म कभू सुक्खा नइ परत रिहिस। तिर तखार के मन ऊहा के भुइया ल सोनहा काहय।
मनियारी म चइतु अउ चैनु नाव के दू भाई रिहिन। गांव के मन उकरे रद्दा म रेंग के किसानी के काम ल करे। दोनो भाई म चइतु ह जादा सियानी करय। चैनु ह भाई संग बुता म जावे जरूर फेर थोकन अललहा रिहिस। खातु-कचरा लेवई, दवा-पानी छिचई चैनु ल बने ओल्हावे नांगर धरे के पारी म एकाध हरिया जोते ताहन घाम लागथे भईया किके मेड़ म जाके सुत जाय। दोनो भाई के बटवारा होगे रिहिस तभो ले दोनो ह एक दूसर के काम म बरोबर मदद करे। 
एक दिन दोनो भाई बियासी नांगर फांदे रिहिस। एक ठन खेत ल बियासिस ताहन थक गेव किके मेड़ म जाके सुतगे। अइसन सुतई सुतिस की निंद र_ा के परगे। चइतु ह जगाये बर गिस त चैनु ह निंद म बड़बड़ावत राहय। ये टूरा ह सपनावत होही किके जगाबे नइ करिस। 
चैनु ह सुते-सुते देखत हे कि- चइतु ह बियासी के नांगर ल ढील के बांधा के पारे-पार घर आवत रिहिस। खांध म बियासी नांगर हाथ म तुतारी अउ बाही म खुमरी ल ओरमाय रिहिस। चइतु के बांधा ले उतरती होइस अउ ठुक ले ओती ले दू झन सहरिया के आति होइस। सहरिया ह चइतु ल रोकत किथे ये मिस्टर सुनो। आरो सुन के चइतु ठाढ़ होइस अउ पुछिस का होगे जी। सहरिया किथे- ''तुम्हारे पास कितनी जमीन है, हम लोग प्रापर्टी डीलर हैं। प्लाट देखने आये हैं। चइतु किथे- ''इहां काकरो करा जमीन नइये। सबो के खेती हे जेमा फसल उगा के अपन जीवका चलाथन। जमीन ल हमन काय करबो साहेब।'अतका ल सुन के एक झन सहरिया किथे अरे वही खेत ही तो जमीन हैं। दूसरा सहरिया ह चइतु ल बेसमझी जानके अपन संगवारी ल किथे चलो यार गांव चलो इसके समझ से बाहर है, किसी और से मिलते है।
चइतु के गांव पहुंचे के पहिलीच दोनो झन सहरिया मन गांव पहुंच गे रिहिस। गांव के मड़ई चवंरा म बइठे दोनो झन गांव के मन ल सकेल के खेती-खार के दाम बतावत रिहिस। बेचे बर गेलौली करत रिहिस किथे- ''इस जमीन पर हम मकान बनना चाहते है। और तुम लोगों को इतना पैसा देंगे जितना तुमने सपने में भी नहीं सोचा होगाÓÓ। अतका ल सुन के चैनु ह किथे- ''सपना म यहू नइ सोचे रेहेन कि हम अपन खेती ल बेचबोÓÓ। सहरिया किथे एक बार फिर सोच लो आखिर कितना कमाते हो उन जमीनों से। अपना जीवन तो देखो आज भी वही के वही हो। जमीन बेचो और अपना जिंदगी बनाओ। अतका म चैनु के बड़े भाई चइतु आगे। चइतु ह सहरी मन के चाल ल समझगे। ओमन ह गांव के मन ल बहला फुसला के ओकर मन के खेत ल खरीदना चाहत हे। जमीन बयपारी ह गांव वाला मन ल गजब लालच दिये के कोसिस करिस फेर चइतु अउ चैनु दूनो भाई करा हर बात के जवाब रिहिस। गांव के मन कोनो उंकर झांसा म नइ अइस।
सहरिया मन निरास जरूर होइस लेकिन ना उम्मीद नइ होइस। काबर की ये दुनिया म पइसा ह अइसन चीज आए जेकर बदौलत कुछू भी करे जा सकथे। सहरिया मन के जाय के बाद सबो गांव वाला मन अपन-अपन बुता म चल दिस। चइतु अउ चैनु दूनो भाई ह सापर म कमाय। गांव म सबे झन खेती खार वाला किसान रिहिस ते पाय के बनिहार भुतियार नइ मिलत रिहिस। सापर म कमा के एक दूसर के काम ल समे म पुरा कर लेवय।
चइतु के खेत म बियासी के नांगर चलत रिहिस। खेत ह डबरा म हे ते पाय के पानी ह माड़ी भर भरे रिहिस। लसरंग-लसरंग रेंगत-रेंगत भइसा के गोड़ ह जझरंग ले दनगरा म बोजागे। दूनो भाई धकर-लगर नांगर के जुड़ा ल छोरिस अउ भइसा ल दनगरा ले खिचे लगगे। भइसा तो जी ले जांगर गरू रिथे। दू झन म टस ले मस नइ होइस। चैनु ह मेड़ मे चड़ के आरो लगइस त तिर तखार के नंगरिहा मन दऊड़ के अइस अउ भइसा ल दनगरा ले निकलिस।
चइतु के खेत म चैनु के भइसा बोजाय रिहिस ते पाय के फेर बियासे के मन नइ होइस अउ वोतकेच बेरा नांगर ल ढील के घर आगे। अनहोनी ल कानो नइ जाने फेर गोठयइया के मुंह ल कोन तोपय। गांव म इहीच गोठ होवय की चइतु के खेत म चैनु के भइसा बोजागे रिहिस। लेदे के बांचे हे। चइतु ह बाटा म पाये हे ते खेत म बड़े-बड़े दनगरा हने रिथे। जे झन मनखे ते ठन गोठ। कोनो काहाथे चैनु ह चिन-चिन के बने-बने खेत पोगराय हे तेकरे फल आय। दूसर मन कांही काहय फेर भाई-भाई के बने बनत रिहिस। चइतु ह भइसा के गोड़ ल सारे बर अपन घर ले बिजली तेल धरके चैनु घर अइस। तात पानी म बने गोड़ ल धोके बिजली तेल म सारिस। भइसा के गोड़ ल बनेच मार परे रिहिस। खोरा-खोरा के रेंगय।
एती बर सहरिया बयपारी मन घेरी बेरी गांव के चक्कर काटत राहय। ओमन इही अगोरा म रिहिस की कोनो भी एका झन ओकर फांदा म आ जाय ताहन पुरा गांव ल लपेट लेबो। बोरिया बांधा म खड़े चारो मुड़ा के डोली ल देखत रिहिस। वोतके बेरा चैनु ह अपन भइसा ल चरे बर बांधा म छोड़ के गिस। चैनु ह सहरिया मन ल नइ देख पइस। फेर सहरिया मन ह तो चैनु ल एक नजर म चिन डरिस। 
ओकर जाए के पाछु सहरिया मन उही गांव के दूसर किसान ल पुछथे- 'कैसे आज ये लोग हल नहीं चला रहे हैं, और इसका जानवर कैसे लंगड़ा रहा है।Ó किसान ह किथे - 'काली इनका भइसा दनगरा म खुसर गया था। येकरे सेती खोरा रहा।Ó सहरिया किथे क्या दनगरा। दनगरा माने खेत भीतर चेर बड़े-बड़े हनियाए रहिता है न उही को दनगरा कहता है। सहरिया मन चेर ल घलो नइ समझ पाइस तब किसान किथे- दरार जानथव, दरार...। सहरिया- हां हां दरार।
दरार शब्द सुन के सहरिया मन के अक्कल तेरवा म चड़ जथे। किसान करा पुरा बात फरिहा के पुछिस। किसान ह जइसे वो जगा ले हटिस ये मन अपन बुता ल बना लिस। चइतु के खेत के धान ल मता दिस। खेत म भइसा ल कुदा-कुदा के पुरा फसल के नास कर करके चुपे चुप भागगे। चइतु ह जब अपन खेत ल देखिस त माथा धर के बइठगे। इही बात म दूनों भाई म तना तनी होगे। भाई-भाई के परेम म दनगरा हनागे। गोठ बात बंद होगे। सापर के काम घलो छटियागे।
इही उखी ल तो बयपारी मन खोजत रिहिस। कब दूनो भाई के जोड़ी फुटय त हमर भुता बनवय। चैनु ले अलगा के चइतु ह खेती-किसानी के बुता ले चिचियागे। मौका पाके सहरिया मन ओला अपन फांदा म फसो लिस। चइतु ह अपन खेती ल बेच के अंते राज म गजब अकन खेत, बाड़ा, टेक्टर, मोटर सबो ले डरिस। अब तो चइतु ह गांव म दमदम-दमदम मोटर म आथे मोटर म जाथे। चार अक्कड़ ल बेच के, चालिस अक्कड़ बीसा डरिस तेकर अलगेच ठाठ-बाठ रिथे। 
जेन चइतु ह खेत ल जमीन केहे बर तियार नइ रिहिस आज उही ह बयपारी करा खेत के सौदा कर डरिस। खेत ल बेच के चइतु ह दनगरा म बोजाय ले बांचगे। चइतुच का अब तो कोनो नइ बोजावे। चइतु के ठाठ-बाठ ल देख के गांव के दूसरो किसान मन अपन-अपन खेत ल बयपारी करा बेच डरिस। धनहा खेती ल पलाट बनाके बयपारी ह सदा बर दनगरा ल पाट दिस। चइतु ह जब अपन खेत बेचिस त चैनु ह गजब सझाइस कि खेत तो कहु भी जाके बिसा लेबो फेर का जेन माटी ह हमर पुरखा के पछीना पीये हे, जांगर टोर मेहनत के गवाही हे वोला बरो के फेर नइ बीसा सकन। तुमन ल पुरखा के चिनहा बर सोक नइ होही फेर मोला हे। चैनु किथे भइया तै भले खेती ल जमीन कहे के सुरू कर दे होबे फेर हम आजो अपन बात म अटल हन। चैनु के बात कोनो नइ सुनिस अउ चइतु सहि एकक करके गांव के गांव बेचागे। 
जेन भुइया ह अन्न उपजत रिहिस उहा अब माहल खड़ा होवथे। बाहिर-बाहिर के मनखे मन आके गांव वाले मन के पुरखा के हाड़ा म नेव धर के घर बनावथे। गांव के लोगन मन अपन पुरखौती चिनहा के सरेखा करे ल छोड़के अन्ते-अन्ते जाके बसत हे।
चैनु ह गांव के उपजाऊ माटी म ईटा पथरा के अटरिया बनत देख के गोहार पार के किथे- अरे इही माटी म सोनहा धान लहरावत रिहिस। ए करा मोर भाई चइतु के खेत रिहिस। ओकर खाल्हे म बरातु के खेत रिहिस। ये कोती ले नाहर पानी आवे। हमन दसरू के खेत ले टार चला के पानी पलोवन। चैनु ह गोहार पारत-पारत झकना के उठिस अउ चिचयावत किथे- तुमन तो पुरखा के चिनहा मेट के, सबके नाव भुता देव। 
अतका आरो ल पाके चइतु ह नागर ल छोड़ के मेड़ म सुते चैनु ल जगावत किथे- का सपनावत हस रे चैनु। मार गोहार पार-पार के चिचियावत हस। चैनु के निंद उमचगे। एक नजर चारो मुड़ा के खेती-खार ल देखिस अउ भगवान ले बिनती करिस कि हे धरती भईया मोर ये सपना ह कभू सिरतोन झन होवे। सदा खेती खार अइसने बने राहय। चइतु किथे का सपनावत रेहे चैनु। बात ल टरकावत चैनु किथे कुछू नही भइया ले जा भाई थोकन सुरता ले मंै अतका ल बियास देथवं। थोरके दू चार भांवर रेंगइस ताहन मुंधियार होगे अउ दूनो झन घर अपन-अपन आगे।
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लेखक - जयंत साहू 
पता- ग्राम डूण्डा, पोस्ट- सेजबहार
जिला/ तह. रायपुर छ.ग. 492015 
मो. 9826753304
jayantsahu9@gmail.com

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